सदियों से भारत कृषि उत्पादों और मैन्युफैक्चर्ड प्रोडक्ट्स का बड़ा निर्यातक रहा है. इसके बाद अंग्रेज आ गए और उन्होंने देश की अथाह संपदा की लूट शुरू कर दी. चंद्रगुप्त मौर्य और उनके बेटे अशोक के दौर में चौथी और तीसरी शताब्दी बीसी में भारतीय मर्चेंट्स का दबदबा पूरी दुनिया में कायम था. तब भारत के कारोबार पूरी दुनिया में माल निर्यात करते थे. उपनिवेशवाद के दौर में भारत की आर्थिक रीढ़ टूट गई. देश की आर्थिक समृद्धि को इस तरह से तोड़ा गया कि आजादी के 75 साल गुजरने के बाद भी भारत एक बड़े निर्यातक के तौर पर कहीं भी अपनी जगह नहीं बना पाया है.
ग्लोबलाइज्ड और महामारी के बाद की दुनिया में भारत के सामने अलग-अलग सामानों और सेवाओं के लिए बड़े मौके पैदा हो रहे हैं. इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फॉरेन मिशंस के साथ 6 अगस्त को की गई बातचीत काफी महत्वपूर्ण है. उनका संदेश ये था कि भारत के निर्यात हितों को विस्तारित करने में मिशंस मदद करें. भारत का निर्यात बढ़ रहा है और निश्चित तौर पर इसे बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है.
लेकिन, इसके साथ ही भारतीय ब्रैंड्स को भी विदेशों में प्रोत्साहित करने की जरूरत है. ब्रैंड्स कंपनियों की तर्ज पर आगे बढ़ते हैं. ऐसे में भारतीय कंपनियों के हितों को भी विदेशों में बढ़ावा दिया जाना जरूरी है.
दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र अमरीका इसे खुल्लमखुल्ला करता है. हम एनरॉन और हार्ले डेविडसन के मामलों में ऐसा देख चुके हैं. पूरी दुनिया में अमरीका अपनी ताकत का इस्तेमाल अपनी कंपनियों को मजबूत करने में करता आया है.
हालांकि, भारत पूंजीवाद में अमरीका के रास्ते पर न चला है न ही चलेगा. लेकिन, अपने ब्रैंड्स और कंपनियों को मजबूत करने की दिशा में एक कदम बढ़ाया जा सकता है. सॉफ्टवेयर सेक्टर में कई भारतीय कंपनियां पहले ही दुनियाभर में खुद को स्थापित कर चुकी हैं और बड़े-बड़े ब्रैंड्स की खरीद कर रही हैं.
देश में नई पीढ़ी के आंत्रप्रेन्योर्स की बाढ़ आ गई है और इनके टेक आधारित कारोबार विदेशी धरती पर सफलता के झंडे गाड़ सकते हैं.
ऐसे कारोबारियों के हित में देश को अपने संकोच को छोड़ना होगा और उन्हें प्रोत्साहन देना होगा.