Provident Fund Subsidy: कोविड-19 महामारी के दौर में सबसे बड़ी चुनौती है कि बेरोजगारी बढ़ी है. लाखों लोगों की नौकरियां चली गई हैं और कई औरों की सैलरी घटी है. लॉकडाउन और आवाजाही पर लगे प्रतिबंध से असंगठित क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है लेकिन संगठित क्षेत्र भी तनाव में है. कोविड-19 संकट के समय में लॉन्च सभी स्कीमों में से आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना सबसे महत्वपूर्ण है.
इसके तहत नए कर्मचारियों और एंप्लॉयर के प्रोविडेंट फंड कंट्रीब्यूशन पर सब्सिडी दी जाती है. योजना के तहत सरकार 1000 कर्मचारियों से कम संख्या वाली कंपनी के और कर्मचारी के प्रोविडेंट फंड के 12-12 फीसदी के कंट्रीब्यूशन देती है. वहीं, 1,000 से ज्यादा लोगों को रोजगार देने वाली कंपनी के कर्मचारियों का 12 फीसदी कंट्रीब्यूशन सरकार की ओर से दिया जाता है.
सरकार का उद्देश्य है कि बिजनेस पर कर्मचारियों के पेमेंट के लिए पड़ने वाले बोझ को कम किया जा सके. इस लक्ष्य को हासिल करने में नीतिकार सफल होते भी नजर आ रहे हैं.
अक्टूबर 2020 से शुरू होने के बाद से अब तक स्कीम के जरिए 79,577 कंपनियों के 21.42 लाख कर्मचारियों को फायदा हुआ है. इसपर अब तक 902 करोड़ रुपये का खर्च हो चुका है. सरकार ने स्कीम को मार्च 2022 तक के लिए बढ़ाने का सही फैसला लिया है.
सिर्फ वही कर्मचारी इसके लिए पात्र थे जिनकी प्रति माह की आय 15,000 रुपये है. साथ ही, ये सिर्फ उन एंप्लॉई को दी जा रही है जो पहले से भविष्य निधी संगठन में रजिस्टर्ड नहीं थे – यानी नए रोजगार के मौके मिले. लेबर पर होने वाले खर्च उद्यमों के लिए एक फिक्स्ड खर्च जैसे है और अगर इसका कुछ हिस्सा सरकार वहन करे तो इससे कारोबारियों को प्रोत्साहना मिलेगी.
इसी पॉलिसी से सीख लेते हुए अधिकारियों को कई और ऐसी स्कीम लानी चाहिए जिससे अलग-अलग सेक्टर्स में रोजगार के मौके खुले. सरकार को असंगठित क्षेत्र के लिए भी इन्सेंटिव देने का प्लान बनाना चाहिए.
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