Economy: हाल के दिनों में जैसे ही कोरोना के नियमों में ढील दी गई, लोग जैसे पागल हो उठे. बाजारों में पहले जैसी भीड़ दिखाई देने लगी. पर्यटक स्थलों पर तो होटलों में जगह मिलनी मुश्किल हो गई. मास्क और सामाजिक दूरी के मामले में भी लोगों में लापरवाही आ गई. ऐसी हालत में स्वयं देश के प्रधानमंत्री को कहना पड़ा कि कोरोना अभी खत्म नहीं हुआ है और इस प्रकार की असावधानियां सभी के लिए खतरनाक हो सकती हैं.
थोड़ी ढील देते ही लोगों का असंयत व्यवहार चिंताएं तो जगाता है मगर इसका एक सकारात्मक पक्ष भी है. यह भी पता लगता है कि कोरोना ने देश के अर्थतंत्र को चाहे जितना भी नुकसान पहुंचाया हो मगर वस्तुओं और सेवाओं के लिए अत्यंत जबरदस्त मांग है जो महामारी के कारण दबी पड़ी है.
यह दबी मांग दवाब के हटते ही अपने विराट रूप में सामने आ जाती है. यानी देश की अर्थ व्यवस्था के आधारभूत तत्व काफी शक्तिशाली हैं और जैसे जैसे महामारी नियंत्रण में आती जायेगी, अर्थ व्यवस्था को पटरी पर आने में देर नहीं लगेगी.
इसकी एक बानगी हमने पिछले वित्तीय वर्ष में भी देखी थी. वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही के आंकड़े जब सामने आए तो जैसे हाहाकार मच गया था. 1979-80 के बाद यह पहला मौका था जब सकल घरेलू उत्पाद में संकुचन देखा गया.
संकुचन भी कोई ऐसा वैसा नहीं, बल्कि -24प्रतिशत के आसपास. कई स्वयंभू अर्थ शास्त्रियों और विपक्षी नेताओं ने तो जैसे अर्थ व्यवस्था का मर्सिया ही पढ़ डाला. मगर वे यह भूल गए कि अर्थव्यवस्था मृत होने के स्थान पर लॉक डाउन के दौरान कुछ समय के लिए विश्राम पर थी.
जैसे जैसे लॉक डाउन ढीला पड़ता गया, अर्थ व्यवस्था भी अपनी सुस्ती त्याग कर चुस्ती की ओर बढ़ने लगी. परिणामतः सकल घरेलू उत्पाद की भी हालत सुधरनी शुरू हो गई.
दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद का संकुचन काफी सुधरा और वह -24 प्रतिशत से सुधर कर -7.4 प्रतिशत पर आ गया. तीसरी तिमाही में तो सकल घरेलू उत्पाद संकुचन से बिलकुल ही बाहर आ गया.
अर्थ व्यवस्था में नई हरी कोपलें फिर दिखाई देने लगीं. चौथी तिमाही में तो इन कोंपलों में कुछ फूल भी खिल उठे और सकल घरेलू उत्पाद में लगभग पौने दो प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई.
इस क्रमशः सुधार के कारण पिछले वित्तीय वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद का संकुचन केवल – 7.25 प्रतिशत दर्ज किया गया.
इतना ही नहीं, मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए सकारात्मक अनुमान लगाए जाने लगे. रिजर्व बैंक का मानना है कि इस वित्तीय वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद में 9.5 प्रतिशत की वृद्धि होने वाली है.
विश्व बैंक के अनुसार यह वृद्धि 8.3 प्रतिशत हो सकती है। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि यह वृद्धि 7.5 प्रतिशत होगी. अलग अलग संगठन, अलग अलग अनुमान.
मगर इतना साफ है कि पिछले वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में अर्थ व्यवस्था के हाथ-पैर नहीं टूटे थे. वह तो केवल लॉक डाउन के बंधन के कारण कुछ समय के लिए भाग सकने में असमर्थ हो गई थी.
जहां तक इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही का सवाल है, इसके आंकड़े अगस्त में सामने आएंगे. हो सकता है कि वे बहुत खुशनुमा नहीं हों. अप्रैल- मई के दौरान आई कोरोना की दूसरी लहर इसकी वजह बनेगी.
मगर, देश अब धीरे-धीरे इस लहर से बाहर निकल रहा है. टीकाकरण का अभियान तेजी से चल रहा है और देश की लगभग 35 करोड़ आबादी को कम से कम एक टीका लग चुका है जो अमेरिका की कुल आबादी से ज्यादा है.
आशा की जानी चाहिए कि इस साल के अंत तक देश में टीकाकरण अभियान पूरे तौर पर संपन्न हो जाएगा. यदि महामारी की तीसरी लहर आती भी है तो वह बहुत घातक नहीं होनी चाहिए.
ऐसे में ऐसा लगता है की अर्थ व्यवस्था पर आए संकट के बादल धीरे धीरे छंट रहे हैं और विकास की सुनहरी धूप फैलने ही वाली है। मानसून के भी अच्छे रहने का अनुमान है.
एक बात जो महत्वपूर्ण है वह यह कि विश्व अर्थ व्यवस्था में पिछले कुछ दिनों के दौरान तेजी से सुधार हुआ है और यह सुधार निर्यात पर आधारित उद्योगों को प्रोत्साहित करेगा.
देश के अंदर जबरन दबी मांग और केंद्र सरकार के कई वित्तीय पैकेज अर्थ व्यवस्था के इंजन को अत्यधिक ऊर्जा देंगे. हम बहुत जल्द अर्थ व्यवस्था की रेल गाड़ी को पूरी गति के साथ पटरी पर दौड़ता हुआ देखने वाले हैं. मगर तबतक दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी.
(धीरंजन मालवे लेखक, शिक्षक और पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग के दिग्गज हैं. लेख में व्यक्त की गई राय निजी है.)
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