महामारी की वजह से कमजोर हुई अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर लौट रही है. इस दौरान दिवाली से पहले आम आदमी के सामने एक दुविधा खड़ी हो गई है. वह नहीं जानता कि उसे हंसना है या रोना. सरकारी राजस्व में मोमेंटम बना हुआ है. अक्टूबर में 1.3 लाख करोड़ रुपये का GST कलेक्शन हुआ. इस साल सिर्फ एक महीने को छोड़कर बाकी सब में रेवेन्यू एक लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा.
जरूरी बात यह है कि रेवेन्यू में हुई बढ़त किसी एक सेक्टर तक सीमित नहीं है. यह आम नहीं है कि सरकार का राजस्व बजट के अनुमान से कहीं अधिक पहुंच जाए. इंडस्ट्री के कुछ सेक्टर वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं. थिंक टैंक NCAER की रिपोर्ट के मुताबिक, बिजनेस कॉन्फिडेंस इंडेक्स तेजी से ऊपर उठ रहा है.
RBI के अनुसार, उपभोक्ता भविष्य को लेकर अधिक कॉन्फिडेंस दिखा रहे हैं. इससे कंजम्पशन बढ़ने की उम्मीद भी बढ़ती है. सस्ते कर्ज और सरकार की ओर से उठाए गए कदम रियल एस्टेट और ऑटोमोबाइल्स जैसे जरूरी सेक्टरों में बिक्री बढ़ा रहे हैं. स्टॉक मार्केट भी कुछ महीनों से लगातार दिवाली मना रहा है.
हालांकि, यह शायद अधूरी तस्वीर है. कई इंडिकेटर हैं जो अधिकांश क्षेत्रों और खासतौर पर ग्रामीण इलाकों को लेकर चिंताजनक संकेत दे रहे हैं. चार-पहिया वाहनों की मांग भले बढ़ी है, गांवों में होने वालीं टू-व्हीलर सेल्स में गिरावट देखने को मिली है. फेडरेशन ऑफ ऑटोमोटिव डीलर्स एसोसिएशन का कहना है कि फेस्टिव सीजन में दिए गए जोर के बावजूद नवरात्रि के दौरान सेल्स 2.55 लाख रही, जो पिछले साल की तुलना में 17.09 प्रतिशत कम है. रूरल सेक्टर में अधिकतर खरीदने जाने वाले ट्रैक्टर की बिक्री भी 21 फीसदी तक फिसली है.
अक्टूबर के अंत तक 21 राज्य उन्हें मिले MNREGA फंड का पूरी तरह से इस्तेमाल कर चुके हैं. इसका मतलब हुआ कि आगे और आवंटन नहीं होने तक पेमेंट अटक सकती हैं.
ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार वाली सरकारी योजना से मदद मिली है. लॉकडाउन के कारण घर लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए यह मददगार रही है. हालांकि CMIE के आंकड़ों के मुताबिक, बेरोजगारी के मामले में रूरल सेक्टर शहरी क्षेत्रों से पिछड़ा रहा, जो महामारी के दौरान रहे ट्रेंड से ठीक उलट है. गांवों का बेरोजगारी दर जहां 7.91 प्रतिशत रहा, वहीं शहरों में यह 7.38 फीसदी पर था.
RBI के आंकड़े बताते हैं कि गोल्ड लोन की मांग बढ़ रही है. इसे आम तौर पर गरीब परिवारों में पैसे की तंगी के संकेत के रूप में देखा जाता है. नौकरी छूटने और वेतन में कटौती होने से कई परिवार सोना गिरवी रखने को मजबूर हुए हैं. अगस्त में ऐसे कर्ज पिछले साल की तुलना में 66 प्रतिशत बढ़कर 62,926 करोड़ रुपये पहुंच गए.
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