कोरोना की मार लगभग सभी सेक्टरों पर पड़ है. इनमें यातायात सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्रों में से एक है. इसमें भी एयरलाइनों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है. क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इक्रा (ICRA) का अनुमान है कि इंडसट्री को 21 हजार करोड़ रुपये से अधिक का घाटा हुआ है. यही कारण है कि सरकार ने देश के आर्थिक विकास में बड़ी भूमिका निभाने की क्षमता रखने वाले एयरलाइन सेक्टर के किराये में औसतन 12.5 प्रतिशत की बढ़त को मंजूरी दी है.
उम्मीद की जा रही है कि इससे कंपनियों को आय बढ़ाने और नुकसान की कुछ हद तक भरपाई करने में मदद मिलेगी. हालांकि, ग्राहकों के नजरिये से समझें तो एयरफेयर में हुआ इजाफा काफी ज्यादा है. ऐसे में नुकसान एयरलाइनों का ही होने वाला है.
रेवेन्यू में बढ़त तभी हो सकती है, जब ठीकठाक संख्या में यात्री आएं. उन्हें आकर्षित करने के लिए उनकी जेब को ध्यान में रखकर किराया तय करने की जरूरत है. महामारी के कारण मिडल क्लास पहले से वित्तीय तंगी से गुजर रहा है. नौकरी छूटने या आय घटने जैसी परेशानियां उनके सामने हैं.
ग्राहकों का कॉन्फिडेंस कमजोर होने और उनकी खर्च करने की क्षमता घटने से अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने लायक डिमांड अभी बन नहीं पा रही है. इंडिविजुअल ही नहीं, बिजनेस पैसेंजरों की संख्या कम देखने को मिल सकती है. कहीं से भी काम करने की छूट मिलने की वजह से सारा काम ऑनलाइन चल रहा है.
कोरोना की तीसरी लहर जब अगर आती है, तो पाबंदियों के कारण इंडस्ट्री को फिर नुकसान झेलना पड़ेगा. ऐसे में यह देखना होगा कि किराया बढ़ने का कंपनियां किसी भी रूप में फायदा उठा पाती हैं भी या नहीं. यात्रियों के बड़ी संख्या में हिस्सा लिए बिना किसी तरह का रिवाइवल नहीं हो सकता. एयरलाइनों के लिए यह एक नई तरह की चुनौती की शुरुआत है.