महामारी ने अर्थव्यवस्था को अभूतपूर्व रूप से प्रभावित किया है. वित्त वर्ष 2021 में अर्थव्यवस्था में 7.3% की भारी गिरावट आई है. लॉकडाउन के चलते लाखों लोगों की नौकरी चली गई थी और बड़ी संख्या में लोगों के वेतन में कटौती हुई. कई छोटे व्यवसायों को अपना कारोबार बंद करना पड़ा. परिणामस्वरूप अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं की मांग में भारी गिरावट आ गई. जैसे-जैसे दूसरी लहर धीरे-धीरे कम होती गई और अर्थव्यवस्था अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करने लगी. नीति निर्माताओं और अर्थशास्त्रियों ने डिमांड में रिकवरी की सबसे अधिक आवश्यकता जताई.
वस्तुओं और सेवाओं की मांग में पुनरुद्धार एकमात्र सबसे बड़ा कारक है, जो अर्थव्यवस्था में जीवन का संचार कर सकता है. लेकिन मांग में पुनरुद्धार तभी हो सकता है, जब दो शर्तें पूरी हों – लोगों के पास जेब में पैसा हो और वे खर्च करने के बारे में आश्वस्त महसूस करते हों. अभी दोनों मापदंडों में कमी है.
सरकार क्रय शक्ति को बढ़ाने के लिए बैंकों से ऋण की पेशकश करने का आग्रह कर रही है. वहीं, विभिन्न प्रकार के ऋणों की ब्याज दरें निम्न स्तर पर आ गई हैं, सरकार ऋण मेलों को प्रोत्साहित कर रही है. एक पॉलिसी टूल के रूप में ऋण मेलों की सीमित उपयोगिता है. वे कुछ लोगों को खर्च करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, लेकिन यह बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) को भी बढ़ा सकता है, जिससे भविष्य के लिए एक समस्या पैदा हो सकती है.
ऋण मेलों की शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी. एक सरकार जो बैंकों की लीन बैलेंस शीट पर जोर देती है, उसे उन लोगों के गले से कर्ज उतारने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, जो पुनर्भुगतान के बारे में आश्वस्त नहीं हैं. महामारी के बाद आवास से लेकर शिक्षा तक लगभग सभी श्रेणियों के ऋणों में डिफॉल्ट बढ़ गया है. एनपीए ने मुद्रा ऋणों को भी प्रभावित किया है, जो देश में सूक्ष्म-उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किए गए थे.
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