डिजिटल सिविलाइजेशन की डिमांड्स को देखते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स और IT मिनिस्ट्री ने 1 लाख करोड़ डॉलर की डिजिटल इकनॉमी का प्लान तैयार किया है. इंफॉर्मेशन के दौर के एक पावरहाउस के तौर पर भारत की ताकत का निश्चित तौर पर देश को फायदा होना चाहिए और डिजिटल इकनॉमी के विस्तार के लिए एक व्यापक आर्किटेक्चर तैयार होना चाहिए. डिजिटल इकनॉमी में पैसे चुटकी बजाते ही पूरी दुनिया में एक जगह से दूसरी जगह से पहुंच सकते हैं. ये लोगों को बड़ी सहूलियत मुहैया कराता है. ये एक ऐसा व्यापक ईकोसिस्टम है जहां पर डिजाइनर्स, इनेबलर्स और यूजर्स सभी मूलरूप में भारतीय हैं.
अश्विनी वैष्णव और राजीव चंद्रशेखर जैसे टेक्नोक्रेट्स के मंत्रालय की कमान हाथ में लेने के साथ ही ये आइडिया अब हकीकत में बदलता दिख रहा है. अपने सपने को सच करने की दिशा में भारत दुनिया की सबसे बड़ी कनेक्टेड सोसाइटी में तब्दील हो सकता है. और इसमें डिजिटल टेक्नोलॉजी के लिए जरूरी कानूनों और डिजिटल गवर्नेंस पर फोकस होना चाहिए.
इसे देखते हुए सरकार को कुछ फंडामेंटल नियमों को अपने दिमाग में रखना चाहिए. पहला, राज्य को इसमें मददगार से अधिक की भूमिका में नहीं रहना चाहिए. ये एक ऐसी भूमिका है जिसे लेकर 1990 के दशक में हुए सुधारों के वक्त से काफी चर्चा हुई है.
दूसरा सरकार को डिजिटल इकनॉमी के लिए कानूनी ढांचा तैयार करना चाहिए. तीसरा, सरकार को वेंडरों की जवाबदेही के नियमों को और मजबूत बनाना चाहिए. हम हाल में ही IT पोर्टल में आई दिक्कतों का उदाहरण देख रहे हैं और ऐसे में इन वेंडरों की जवाबदेही पुख्ता तौर पर सुनिश्चित की जानी चाहिए.
रेगुलेशंस का काम स्वायत्त संस्थाओं के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए और इसमें सरकारी दखल नहीं हो. साइबर सिक्योरिटी का मजबूत होना भी सरकारी जिम्मेदारी है क्योंकि इससे लोगों में भरोसा पैदा होता है.