स्वास्थ्य सेवा में आत्मनिर्भर होने के भारत के दावे को बड़ा झटका लगा है. अकेले चीन से मेडटेक और चिकित्सा उपकरणों (Medical Imports) के आयात में 75% तक की बढ़ोतरी हुई है, जिससे भारतीय उद्योग जगत में खतरे की घंटी बज गई है. चीन पहले तीसरे स्थान पर था, जो 2020-21 के दौरान अमेरिका और जर्मनी को पछाड़कर भारत को चिकित्सा उपकरणों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार ‘मेक इन इंडिया’ नीति और सीमा पर झड़प के बाद चीनी आयात के खिलाफ प्रदर्शन के बावजूद यह आकड़ा सामने आया है. उद्योग के विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकांश वृद्धि ऑक्सीमीटर, डायग्नोस्टिक इंस्ट्रूमेंट्स, डिजिटल थर्मामीटर जैसी महत्वपूर्ण वस्तुओं के आयात के कारण हुआ है, जो महामारी के दौरान जरूरी थे, क्योंकि यह तुरंत भारत में बनाना संभव नहीं था.
वहीं सभी देशों से मेडटेक आयात में कुल वृद्धि लगभग 7% है. विशेषज्ञों ने कहा, सरकार को इस क्षेत्र में निवेश करना जारी रखने की जरूरत है, इसी के कारण मई 2020 से विशेष रूप से चीन से आयात बढ़ा है. हम इन सब के खिलाफ नहीं है, लेकिन अगर ये घरेलू उद्योग को नुकसान पहुंचाते हैं, तो घरेलू कंपनियों को प्रोत्साहन देकर सुधारात्मक नीतियां अपनानी चाहिए.
एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के राजीव नाथ ने कहा कि घरेलू निर्माताओं के द्वारा बनी चीजों का खरीदने के आदेश होने के बाद भी चीनी आयात में 75% की वृद्धि देखी गई है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है. पिछले कुछ सालों में चीन से आयात वार्षिक आधार पर 5 से 15 फीसदी तक बढ़ा है. भारत में 80 फीसदी से ज्यादा चिकित्सा उपकरणों का आयात होता है. इस वर्ष का आयात बिल लगभग 45,000 करोड़ रुपये है.
क्रिटिकल केयर और आईसीयू उपकरण निर्माता स्कैनरे टेक्नोलॉजीज के एमडी विश्वप्रसाद अल्वा ने कहा कोविड के दौरान चीन से मेडटेक उपकरणों का आयात तेजी से बढ़ा. भारत में पीपीई किट, मास्क और सैनिटाइज़र आदि को छोड़कर बाकी चीजों का प्रबंध करने का कोई तरीका नहीं था. मेडटेक सेक्टर कुछ महीनों में ‘आत्मनिर्भर’ नहीं हो सकता है. हमें प्रौद्योगिकी, गुणवत्ता, आपूर्ति श्रृंखला बनाने की जरूरत है और इसे स्थापित करने में एक दशक लगेंगे, और वो भी तब जब सही नीति बनाई जाए.
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