काले धन पर अंकुश लगाने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए नोटबंदी के ऐलान को आज पांच साल हो गए हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने 8 नवंबर 2016 को बड़ा फैसला लेते हुए 500 और 1000 रुपए के नोट को चलन से बाहर कर दिया था. इस नोटबंदी के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि लोग डिजिटल पेमेंट पर अधिक विश्वास करेंगे. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि वित्तवर्ष 2020-21 में जीडीपी (GDP) के अनुपात में नकदी का चलन अपने उच्चतम स्तर 14.5 फीसदी पर पहुंच गया है.
इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक नोटबंदी के पांच साल बाद भी देश में नोटों का चलन कम होने की बजाए बढ़ा ही है. इसके साथ ही डिजिटल पेमेंट में भी बढ़त देखी गई है. लोग कैशलेस पेमेंट मोड को भी अपना रहे हैं. आरबीई (RBI) के मुताबिक 4 नवंबर 2016 को 17.74 लाख करोड़ का नकद चलन में था. जो 29 अक्टूबर 2021 तक बढ़कर 29.17 लाख करोड़ रुपए हो गया. वित्तवर्ष 2020-21 की बात करें तो इस दौरान मूल्य में 16.8 प्रतिशत और मात्रा में 7.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. जबकि 2019-20 के दौरान मूल्य और मात्रा में क्रमश: 14.7 फीसदी और 6.6 फीसदी की वृद्धि हुई थी.
खबर के मुताबिक देश में इस दौरान डिजिटल ट्रांजेक्शन में भी बढ़ोतरी देखी गई है. क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, नेट बैंकिंग, यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस सभी माध्यमों से डिजिटल पेमेंट बढ़ा है. यूपीआई के बारे में बात करें तो इसकी शुरुआत 2016 में हुई थी. साल 2021 में इससे लगभग 7.71 लाख करोड़ रुपए का लेनदेन हुआ. नोटबंदी से तुरंत नकदी में जरूर कमी आई थी. आरबीआई की अपनी साल 2018 की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि नोटबंदी के बाद करीब 99% करेंसी सिस्टम में वापस आ गई है. रियल एस्टेट बाजार जैसे कई सेक्टर में भी कैश का लेन-देन कम नहीं हुआ है.
आरबीआई द्वारा दिसंबर 2018 और जनवरी 2019 में 6 शहरों के मध्य किए गए एक सर्वे में पता चला कि नियमित खर्चों के लिए लोग लेन-देन के लिए नकदी का ही इस्तेमाल ज्यादा कर रहे हैं. रिपोर्ट कहती है कि साल 2020-21 में करेंसी नोटों का सर्कुलेशन काफी बढ़ा है और इसका सबसे बड़ा कारण यह कि लोगों ने कोरोना महामारी के दौरान सचेत रहते हुए काफी नकदी निकाली ताकि आगे आने वाली परेशानी में काम आ सके.
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