कारीगरी देखते ही बनती है
दरअसल, मध्य प्रदेश में, जहां खंडवा जिले के आदिवासी ग्रामीण क्षेत्र में बांस की कारीगरी देखते ही बनती है. सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय भारत सरकार की न्यू स्फूर्ति योजना के अंतर्गत बांस शिल्प क्लस्टर स्थापित किया गया हैं, जो कि बम्बू क्राप्ट क्लस्टर गुलाईमाल के रूप में ग्रामीण आदिवासी महिला पुरुषों को रोजगार उपलब्ध करवा रहा हैं.
क्लस्टर के कारीगरों ने बांस की बेहतरीन कारीगरी की हैं. जिसमे रक्षा बंधन त्योहार को देखते हुए वृक्ष बंधन राखियों का निर्माण किया गया हैं, जो कि पूरी तरह इको फ्रेंडली हैं.
बॉक्स व राखियों की बढ़ी मांग
राखी के लिए बांस का ही बाक्स बनाकर उसमें कुमकुम, चावल के साथ ही महुआ व काजू बादाम से बने दो लड्डू व दो नग राखी भी रखी गई हैं.
कारीगरों द्वारा राखी निर्माण में मक्के के भुट्टे के छिलके का बेस बनाकर लकड़ी के मोती बांस की डिजाइन के साथ ही उसमे निम्बू के बीज चिपकाए गए हैं. राखी का सेम्पल देखने के बाद ही क्लस्टर को नागपुर, छनेरा, भोपाल, इंदौर, खण्डवा से लगभग 200 से अधिक बॉक्स व 7,000 से ज्यादा राखियों के ऑर्डर मिल चुके हैं.
आदिवासी युवा व युवतियों को मिला काम
आदिवासी विकास खण्ड खालवा के गुलाई माल में बेम्बू क्राप्ट क्लस्टर में बांस से सोफा, कुर्सी, घरेलू उपयोग की चीजों के साथ ही लेम्प, फ्लावर पार्ट, घड़ी, ज्वेलरी, नेकलेस, ईयर रिंग, पलंग, ट्रे, व अन्य सामाग्री का निर्माण किया जा रहा हैं.
क्लस्टर में 22 जून से निर्माण कार्य प्रारम्भ हैं. कार्य के लिए सौ से अधिक स्थानीय आदिवासी युवा व युवतियों द्वारा कार्य किया जा रहा हैं. जिनका आने व जाने का सारा रिकॉर्ड थम्ब मशीन के माध्यम से रखा जा रहा हैं.
वहीं कार्य के अनुरूप भुगतान प्रक्रिया भी डिजिटल होकर खाते में सीधे भुगतान किया जा रहा हैं. क्लस्टर द्वारा प्रति माह स्वास्थ शिविर का आयोजन कर कार्य करने वाले कारीगरों का ध्यान रखा जा रहा हैं.
बांस की डिजाइन की दी गई ट्रेनिंग
क्लस्टर के महेश नायक ने बताया कि यहां पर सभी कारीगर ग्रुप के माध्यम से कार्य करते हैं. 6 लोगों का एक ग्रुप बनाया गया हैं. कुल 21 ग्रुप अभी काम कर रहे हैं.
कारीगरों के लिए नागपुर से आये ट्रेनर दीपक सोपान व शिवराम गांवों के युवा व युवतियों को बांस की डिजाइन की ट्रेनिंग के साथ ही निर्माण की विधिवत ट्रेनिंग दे रहे हैं. अभी 42 मशीन बांस की कारीगरी के लिए उपयोग में लाई जा रही हैं.
बांस टिटमेंट
क्लस्टर के अध्यक्ष मोहन रोकड़े ने बताया कि बांस को उपयोग में लाने से पहले 21 दिन तक पानी मे डुबोकर उसमे फिटकरी व नमक डालकर रखा जाता हैं, जो कि बाद में प्रोडक्ट बनाने में उसकी उम्र बढ जाती हैं. साथ ही बांस के बने प्रोडक्ट में फफूंद जैसी समस्या नही आती.
अगरबत्ती का भी होगा प्रोडक्शन
क्लस्टर गुलाई माल में माह सितम्बर से अगरबत्ती बनाने का काम भी चालू किया जाएगा, जिसे बेम्बू क्राप्ट के नाम से मार्केट में भेजा जाएगा.
क्लस्टर के मोहन रोकड़े ने बताया कि 12 से ज्यादा फ्लेवर के साथ अगरबत्ती बनाने का काम चालू किया जाएगा, जो जिले के बाद संभाग स्तर पर सप्लाई की जाएगी. इसके लिए मशीनें आ चुकी हैं. मशीनों से अभी अगरबत्ती की काडिया बनाने का काम चल रहा हैं.
कारीगरों के लिए स्वरोजगार के अवसर खुले
आदिवासी विकास खण्ड खालवा में क्लस्टर की स्थापना के बाद वन ग्राम गुलाई माल में कारीगरों के लिए स्वरोजगार के अवसर खुले हैं. अब कोई भी कारीगर क्लस्टर में जाकर अपना हुनर दिखा कर अपनी आमदनी बड़ा सकता हैं.
42 मशीनों के लिए 24 घंटे बिजली की उपलब्धता के लिए गुलाई माल में बिजली ग्रिड लगाने की भी स्वीकृति प्रदान हो गई हैं, जो कि आने वाले समय मे अधिक से अधिक कारीगरों को भी बांस फिनिश होकर जल्द उपलब्ध होगा जिससे बांस से सामग्री बनाने में आसानी होगी.
आदिवासियों के जीवन मे बांस की उपयोगिता पर बनेगी डॉक्यूमेंट्री
क्लस्टर के मोहन रोकड़े ने बताया कि बांस की कारीगरी का कार्य सतत चालू हैं. आने वाले समय मे बांस को लेकर आदिवासियों के जीवन मे बांस की उपयोगिता को लेकर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म भी बना कर भारत सरकार को दी जाएगी.
वन मंत्री कुंवर विजय शाह के मार्गदर्शन और दिशा निर्देशन में बेम्बू क्राप्ट क्लस्टर सेंटर एक नया आयाम स्थापित कर अपनी पहचान बनाएगा, जिसे आने वाले समय में एक पर्यटन स्थल के रूप में देखा जा रहा है.