इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड पिछले कई वर्षों में किए गए सबसे महत्वपूर्ण वित्तीय सुधारों में से एक है, लेकिन यह देश के पीड़ित घर खरीदारों के हितों की पूर्ती नहीं करता. यदि कोई पीड़ित घर खरीदार अपराधी डेवलपर्स के खिलाफ दिवालियापन की कार्यवाही शुरू करना चाहे, तो उसके सामने कई सारी बाधाएं आएंगी. उसके लिए अन्य घर खरीदारों का विवरण प्राप्त करना और उनसे संपर्क करना असंभव होगा.
बिल्डर्स और डेवलपर्स इन्फॉर्मेशन गेप का लाभ उठाते हैं. इससे पीड़ित ग्राहक दिवालियापन की कार्रवाई शुरू करने के लिए नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल को आवश्यक संख्या में खरीदारों के नाम नहीं भेज पाता. नतीजतन, कई ग्राहक डेवलपर पर भरोसा कर अपनी जमा-पूंजी से घर खरीद लेते हैं और फिर कभी ना खत्म होने वाली परेशानियों से जूझते रहते हैं.
इस स्थिति को समाप्त करने के लिए संसदीय पैनल ने घर खरीदारों के हित में इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड में संशोधन की सिफारिश की है. इसने सिफारिश की है कि अगर एक घर खरीदार नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल के समक्ष दिवालिएपन के लिए फाइल करना चाहता है, तो डेवलपर को प्रोजेक्ट के अन्य खरीदारों का विवरण देना होगा.
हालांकि, यह कदम पीड़ित खरीदार की फ्लैट पाने या उसके पैसे वापस पाने में आने वाली मूल समस्या का समाधान नहीं करेगा, लेकिन यह कम से कम उसे दिवालियापन की प्रक्रिया के लिए सभी सूचनाओं से लैस करेगा, जो हर खरीदार का अधिकार होना चाहिए. इसका एक और फायदा हो सकता है. बिल्डर्स उपभोक्ता के साथ इन्फॉर्मेशन गेप का फायदा उठाकर उसे लगातार परेशान नहीं कर पाएंगे. दिवालियापन की कार्रवाई का सामना करने का डर भी इस क्षेत्र में कुछ अनुशासन लाने में मदद कर सकता है.
पैनल के सुझाव का शक्तिशाली और प्रभावशाली रियल एस्टेट लॉबी द्वारा विरोध किया जा सकता है. लेकिन यह एक उपभोक्ता केंद्रित सकारात्मक कदम है, जिसे सरकार को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.