अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से दुनियाभर के देश परेशान हैं. इन दोनों देशों के विवाद के कारण कुछ देशों को आर्थिक नुकसान का भी सामना करना पड़ेगा, जिनमें भारत भी शामिल है. पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के मुताबिक अफगानिस्तान से सालाना हजारों की संख्या में मरीज भारत इलाज कराने आते हैं. इनके चलते भारत की अर्थव्यवस्था में सालाना हिस्सेदारी 2500 करोड़ रुपये के आसपास है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और पर्यटन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक हर साल लाखों विदेशी मरीज इलाज के लिए भारत पहुंची है. अर्थव्यवस्था में एक बड़ी हिस्सेदारी इन विदेशी मरीजों की भी होती है. भारत में जिन देशों से सबसे ज्यादा मरीज आते हैं उनमें, बांग्लादेश, इराक, मालदीव और अफगानिस्तान शामिल है.
पिछले कुछ सालों में अफगानिस्तान से आने वाले मरीजों की संख्या लगातार कम हो रही है. साल 2017 में अफगानी मरीजों की संख्या 11.25 फीसदी थी जो साल 2018 में 7.31, 2019 में 4.73 और साल 2020 में 8.87 फीसदी तक पहुंच गई लेकिन साल 2021 में यह अभी एक फीसदी तक भी नहीं पहुंची है. हालांकि पिछले दो सालों से मरीजों की संख्या में कमी का एक बड़ा कारण भारत में कोरोना की स्थिति भी है.
मुंबई, बैंग्लोर, नई दिल्ली, और चैन्ने के अस्पतालों में इलाज कराने वाले इन मरीजों की संख्या पिछले कई महीनों से लगातार कम हो रही है. स्वास्थ्य क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि अफगानिस्तान से मरीज अमेरिका या फिर भारत इलाज के लिए आता है. अमेरिका में इलाज महंगा पड़ता है. जबकि भारत में 166 देशों के लिए ई-मेडिकल वीजा की सुविधा है. इसी के साथ अफगानी मरीजों के लिए निशुल्क वीजा भी हमारे देश में उपलब्ध है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों की मानें तो भारत में साल 2000 में अफगानिस्तान की हिस्सेदारी दो फीसदी के आसपास थी जोकि साल 2009 में बढ़ते हुए 10.7 फीसदी तक पहुंच गई. इसके बाद भारत आने वाले अफगानी मरीजों की संख्या 14.3 फीसदी तक पहुंच गई थी, लेकिन इसके बाद निरंतर गिरावट देखने को मिली.
साल 2019 में यह 4.7 फीसदी तक पहुंची. वहीं नवंबर 2020 से स्थिति एक फीसदी से भी निचले पायदान पर आ गई. वहीं साल 2009 में बांग्लादेश से 23.6 फीसदी मेडिकल टूरिस्ट भारत आए थे, जबकि मालदीव की हिस्सेदारी 57.5 फीसदी थी. साल 2019 में बांग्लादेशियों की हिस्सेदारी बढ़कर 57.5 फीसदी तक पहुंच गई है.
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