मांग और सप्लाई के बीच अंतर होने की वजह से साल 2030-31 तक भारत बड़ी मात्रा में दलहन और तिलहन का आयात जारी रखेगा. नाबार्ड और इक्रियर (ICRIER) ने अपने शोध पत्र में यह जानकारी साझा की है. अध्ध्यन के मुताबिक दलहन उत्पादन फसल वर्ष 2022-23 (जुलाई-जून) के 26 मिलियन टन से बढ़कर फसल वर्ष 2030-31 तक 35 मिलियन टन होने का अनुमान है. हालांकि देश को वित्त वर्ष 2031 तक 39.2 मिलियन टन दलहन की जरूरत होगी. मांग ज्यादा होने की वजह से भारी आयात होने का अनुमान है.
बता दें कि मौजूदा समय में भारत अपनी दालों की खपत का करीब 15 फीसद आयात करता है. शोध पत्र में फसल की उत्पादकता बढ़ाने के लिए बीज और कृषि प्रौद्योगिकियों के उपयोग समेत आयात पर निर्भरता को कम करने की सिफारिश की गई है. शोध पत्र में कहा गया है कि भविष्य में सप्लाई की तुलना में तिलहन और दालों की मांग ज्यादा रहने की संभावना है. ऐसे में तिलहन और दालों के उत्पादन और उत्पादकता के स्तर को बढ़ाने की जरूरत है.
2022-23 ऑयल वर्ष (नवंबर-अक्टूबर) में भारत का पाम ऑयल, सोयाबीन और सूरजमुखी का आयात 17 फीसद बढ़कर रिकॉर्ड 16.47 मिलियन टन हो गया, जिसका मूल्य 1.38 खरब रुपए है. भारत अपनी कुल सालाना खाद्य तेल खपत करीब 24 से 25 मिलियन टन का तकरीबन 56 फीसद आयात करता है. खाद्य तेल आयात में पाम तेल की हिस्सेदारी करीब 60 फीसद है. वहीं खाद्य तेल में सोयाबीन तेल की 22 फीसद और सूरजमुखी की 17 फीसद हिस्सेदारी है. कुल घरेलू खाद्य तल उत्पादन में सरसों की हिस्सेदारी 40 फीसद, सोयाबीन की 24 फीसद और मूंगफली की 7 फीसद हिस्सेदारी शामिल हैं.