भविष्य की जरूरतों के लिए लोग तरह-तरह की स्कीमों में पैसा लगाते हैं, लेकिन इन दिनों हाइब्रिड फंड में निवेश का चलन जोरों पर है. चूंकि इसमें अलग-अलग एसेट में पैसा लगाया जाता है इसलिए कम जोखिम के साथ बेहतर रिटर्न मिलता है. विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि निवेशकों को अपने वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए सभी योजनाओं का मिश्रण रखना चाहिए. हालांकि निवेश से पहले निवेशकों को अपनी जरूरत, जोखिम और लक्ष्य पर फोकस करना होगा.
क्या होते हैं हाइब्रिड म्यूचुअल फंड?
हाइब्रिड फंड ऐसी स्कीम है जिसमें पैसा दो या दो से अधिक एसेट क्लास में लगाया जाता है. इसमें इक्विटी, बॉन्ड या दूसरा कोई एसेट हो सकता है. इन्हें एसेट एलोकेशन फंड भी कहा जाता है. इसमें बाजार के उतार-चढ़ाव को सहने की क्षमता होती है. मान लीजिए अगर इक्विटी में लगा पैसा बाजार के गिरने पर प्रभावित होता है तो डेट और सोने में लगे पैसे के जरिए फंड बैलेंस हो जाता है. वैसे ही अगर सोने में कमजोरी से फंड में रिटर्न कम होता है तो डेट और इक्विटी के जरिए ये बैलेंस हो जाता है. नतीजतन अलग-अलग एसेट क्लास में निवेश से डाइवर्सिफिकेशन का फायदा मिलता है.
टैक्स के लिहाज से फायदेमंद
विशेषज्ञों का कहना है कि हाइब्रिड फंडों में डेट फंडों की तुलना में अच्छा रिटर्न मिलता है और ये इक्विटी फंडों की तुलना में अधिक स्थिर होते हैं. टैक्स के मामले में भी ये फायदेमंद है. इक्विटी फंड में लगने वाला टैक्स योजना की अवधि पर निर्भर करता है. एक लाख रुपए से ज्यादा के लॉन्ग टर्म केपिटल गेन्स पर 10 फीसदी टैक्स लगता है, जबकि शॉर्ट टर्म में 15 फीसदी कर लगता है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर जितेंद्र सोलंकी का कहना है कि हाइब्रिड फंड इक्विटी और डेट जैसे एसेट क्लास में निवेश करते हैं. इक्विटी एक्सपोजर के आधार पर इसमें डेट फंड के मुकाबले जोखिम थोड़ा ज्यादा होता है. हालांकि इसमें रिटर्न भी बेहतर मिलता है. जो निवेशक इसमें निवेश करना चाहते हैं उन्हें चुनिंदा हाइब्रिड फंड स्कीम के इक्विटी एक्सपोजर को देखते हुए अस्थिरता और जोखिम का ध्यान रखना चाहिए. फंड में जितना अधिक इक्विटी एक्सपोजर होगा, निवेशक को लंबे समय का नजरिया रखना होगा.