रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर शक्तिकांत दास के एक बयान से भारतीय बैंकिंग व्यवस्था को लेकर ठीक वैसी ही आशंका बढ़ गई है, जिस तरह के हालात अमेरिकी बैंकिंग व्यवस्था में देखे को मिल रहे हैं. RBI गवर्नर ने कहा है कि भारतीय बैंकों को किसी अनिश्चित झटके को सहने के लिए तैयार रहना चाहिए. उन्होंने कहा “बैंक प्रबंधन को समय समय पर रिस्क का आकलन करने की जरूरत है. बैंकों को अपने पास पर्याप्त पूंजी तथा लिक्विडिटी बनाए रखना होगा”. रिजर्व बैंक गवर्नर ने यह भी कहा है कि RBI की तरफ से लिक्विडिटी और पूंजी की लिमिट को लेकर जो नियम हैं बैंकों को अपने पास उससे भी ज्यादा पूंजी रखने की जरूरत है.
क्या बैंकों के पास है पर्याप्त पूंजी?
बैंकों की तरफ से हर तरीके से पूंजी जुटाने के प्रयास हो रहे हैं. Deposits पर Bank पहले के मुकाबले ज्यादा ब्याज दे रहे हैं. लोगों को नए सिरे से बचत खाते खोलने के लिए प्रेरित किया जा रहा है और साथ में बॉन्ड जारी कर बैंक बाजार से भी पूंजी जुटा रहे हैं. RBI के आंकड़ो के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 में सालाना आधार पर बैंकों के डिपॉजिट 9.58 फीसद की दर से बढ़ें है. वित्त वर्ष 2021-22 में बैंकों के जमा की वृद्धि दर 8.9 फीसद थी. हालांकि वित्त वर्ष 2022-23 में बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ में सालाना आधार पर 15 फीसद से बढ़ी है. वित्त वर्ष 2021-22 में यह आंकड़ा 9.6 फीसद था. बैंकों के क्रेडिट ग्रोथ में 2011-12 के बाद सबसे ज्यादा उछाल आया है. पिछले साल के मुकाबले कर्जी की मांग में बड़ा उछाल आया है. इस वजह से भी बैंकों पर जमा जुटाने का दवाब है.