कानपुर की नेहा शुक्ला ने राशन का बढ़ा हुआ बिल देखा तो हैरान रह गईं. आटे दाल और तेल का भाव तो ज्यादा नहीं बढ़ा था लेकिन इसके बावजूद बिल 500 रुपए बढ़कर आया. बिल को जब गौर से देखा तो पता चला कि महंगाई के असली विलेन तो मसाले हैं. एक साल पहले के बिल से तुलना की तो सारा गणित समझ में आ गया. सभी मसालों के दाम बढ़ चुके हैं. सालभर पहले 100 ग्राम जीरा खरीदने के लिए जितने पैसे लगते थे, इस बार 75-80 फीसद ज्यादा कीमत देनी पड़ी है. सौंफ का भाव 55 फीसद से ज्यादा बढ़ चुका है और धनिया के लिए भी 45 फीसद से ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है. लाल मिर्च और कालीमिर्च का भी ऐसा ही हाल है.
मसालों की इस महंगाई की वजह से सिर्फ किचन का बजट नहीं बढ़ा बल्कि सरकार की परेशानी भी यही बढ़ा रहे हैं. रिटेल महंगाई के आंकड़े देख लीजिए. अगस्त में महंगाई को 7 फीसदी पहुंचाने में सबसे ज्यादा रोल मसालों का ही है और 3 महीने से इनकी महंगाई लगातार बढ़ रही है और दहाई के आंकड़े में बनी हुई है. इस साल अधिकतर मसालों की उपज पिछले साल के मुकाबले कम रहने का अनुमान है. जिस वजह से सप्लाई प्रभावित होने की आशंका है. इसी आशंका की वजह से कीमतें बढ़ रही हैं. इस साल लाल मिर्च उत्पादन में करीब 2 लाख टन और धनिया उत्पादन में करीब 90 हजार टन कमी का अनुमान है. जीरा और काली मिर्च का उत्पादन भी इस साल घटा है.
मसाले सरकार की उस जरूरी वस्तुओं वाली लिस्ट में भी नहीं आते जिसमें गेहूं और तेल शामिल हैं. यानि वे वस्तुएं जिनकी कीमत थोड़ी भी बढ़े तो सरकार तुरंत हरकत में आ जाती है. आटा कहीं ज्यादा महंगा न हो जाए इसके लिए सरकार ने गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी है. साथ में खाने के तेल का आयात बढ़ाने के लिए कई तरह के शुल्क खत्म कर दिए हैं. लेकिन मसालें क्योंकि उस लिस्ट में नहीं आते. ऐसे में इनकी कीमत को घटाने के लिए सरकार की तरफ से जल्द कोई कदम उठाए जाने की उम्मीद कम ही है. यानी किचन में मसालों की महंगाई से तभी राहत मिलेगी, जब सप्लाई बढ़े या मांग घटे. और निकट भविष्य में दोनों ही परिस्थितियां नजर नहीं आ रही.