लाल डोरा में घर खरीदने में क्या हैं जोखिम?

लाल डोरा हर गांव में ऐसी भूमि है, जिसका कोई राजस्व रिकॉर्ड तो नहीं होता

लाल डोरा में घर खरीदने में क्या हैं जोखिम?

शिमला के रहने वाले अजय परमार की गुरुग्राम की आईटी कंपनी में नौकरी लगी. अच्छा वेतन मिल रहा था तो उन्होंने एनसीआर में ही घर खरीदने का मन बना लिया. फरीदाबाद के पास उन्हें एक घर पसंद आया और खरीदने के लिए अजय ने 5 लाख का बयाना भी दे दिया. लेकिन तभी उन्हें पता चला कि घर की रजिस्ट्री नहीं हो पाएगी. क्योंकि जिस जगह घर बना था वह लाल डोरा में आती है. अजय ने कभी लाल डोरा का नाम नहीं सुना था. सिर्फ अजय का ही लाल डोरा नाम कि समस्या से सामना नहीं हुआ है. देशभर में एक बड़ी आबादी है जो लाल डोरा क्षेत्र में रहती है.

क्या है लाल डोरा
लाल डोरा हर गांव में ऐसी भूमि है, जिसका कोई राजस्व रिकॉर्ड तो नहीं होता लेकिन आमतौर पर लोग रहने और गैर कृषि उद्देश्यों के लिए उसका इस्तेमाल करते हैं. अंग्रेजों ने 1908 में लाल डोरा व्यवस्था को लागू किया था. उस दरम्यान गावों में आवासीय तथा खेती की जमीन के अलावा जो भूमि होती थी, नक्शे पर उस जमीन को लाल लकीर खींचकर अलग दर्शाया जाता था, जो जमीन लाल लकीर के दायरे में होती थी उसे बाद में लाल डोरा कहा जाने लगा. यह व्‍यवस्‍था खास तौर पर दिल्‍ली और इसके आसपास के इलाकों में लागू की गई थी.

हालांकि अब देशभर में जमीनों की जरूरत बढ़ती जा रही है और यही वजह है कि लाल डोरा सिस्टम को हटाने की मांग भी बढ़ रही है. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने राज्य के 242 गांवों को लाल डोरा से मुक्त करने की घोषणा की है. इस घोषणा पर अमल की प्रक्रिया चल रही है.

हालांकि दिल्ली के प्राइम इलाके अब भी लाल डोरा भूमि की श्रेणी में हैं. कुछ इलाके तो ऐसे हैं जहां कर्मशियल और पॉश कॉलोनियां लाल डोरा भूमि पर बनी हुई हैं. चूंकि इन संपत्तियों को नगरीय प्राधिकरण के तहत पंजीकृत नहीं किया जा सकता है, इसलिए दिल्ली सरकार लाल डोरा प्रमाण पत्र जारी करती है जो संपत्ति के मिलकियत का प्रमाण माना जाता है.

प्रापर्टी एक्सपर्ट प्रदीप मिश्रा कहते हैं कि लाल डोरा के तहत आने वाली जमीनों को भवन निर्माण से जुड़े कानून तथा नगरपालिका कानून से छूट होती है. इसलिए वहां लोग बिना नक्शा पास कराए अपनी जरूरत के हिसाब से घर बना लेते हैं. यानि ऐसी जगह पर घर खरीदना जोखिम भरा है. अगर जमीन लाल डोरे के बाहर है तो उसके अलग-अलग नंबर होते हैं. वह सरकारी भू अभिलेखों में किसी न किसी नाम से रजिस्टर्ड होती है. लेकिन लाल डोरे की जमीन के साथ ऐसा नहीं होता.

दिल्ली एनसीआर में लाल डोरा आबादी की जमीनें सस्ती हैं. इसलिए यहां घरों के दाम भी काफी किफायती हैं. ज्यादातर इलाकों में कनेक्टिविटी भी है। जाहिर है इस तरह की प्रॉपर्टी लोगों को खूब लुभाती है. शायद इसी वजह से जय परमार ने फरीदाबाद में घर खरीदने का मन बनाया हो.

रजिस्ट्री न होने के कारण ही लोग लाल डोरा की जमीन खरीदने से डरते हैं. इस श्रेणी की प्रॉपर्टी पर बैंक लोन नहीं देते हैं. इसी वजह यहां की जमीन और घर सस्ते होते हैं. इसलिए लंबे समय से यहां के रहने वाले लाल डोरा को खत्‍म करने की मांग उठा रहे थे.

दिल्ली में हालांकि लाल डोरा सर्टिफिकेट जारी होते हैं जो साबित करते हैं कि मालिकाना हक आबादी के पास है. उन्हीं सर्टिफिकेट के आधार पर ही गांव में मकान मालिक पानी और बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन करते हैं.

लेकिन दिल्ली में भी एक दिक्कत है. दिल्ली मास्टर प्लान के मुताबिक 1500 वर्ग फीट से ज्यादा वाले प्लॉट्स को मल्टी स्टोरी अपार्टमेंट्स में विकसित किया जा सकता है. इस लालच में कई छोटे बिल्डर्स जमीन मालिकों के साथ करार कर लेते हैं. फिर छोटे-छोटे फ्लैट बनाकर बेच देते हैं. यूपी और हरियाणा में भी इस तरह के फ्लैट बनाकर बेचे जाते हैं. लेकिन खरीदार को आगे चलकर कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. जैसा की अभी अजय परमार को करना पड़ रहा है.

प्रॉपर्टी एक्सपर्ट सतीश उपाध्याय कहते हैं कि लाल डोरा की जमीन या प्रोजेक्ट में निवेश करने की सोच रहे हैं तो प्रॉपर्टी के दस्तावेजों की प्रामाणिकता और स्वामित्व की वैधता की जांच कर लें. अगर संपत्ति के दस्तावेज साफ हैं और कई मालिकों को बेचा नहीं गया है या संपत्ति गिरवी नहीं है तो निवेश किया जा सकता है.

मनी9 की सलाह
लाल डोरा क्षेत्र की प्रॉपर्टी सस्ती तो होती है लेकिन इन क्षेत्रों में नक्शा पास होने की वजह यहां बेतरतीब विकास होता है. नगरपालिका की दायरे से बाहर होने के कारण यहां बुनियादी सुविधाओं का अभाव रहता है. ऐसे में सोच-समझ कर ही कोई फैसला लें.

Published - August 23, 2023, 08:01 IST