Prenuptial Agreement: ऐसे वक्त में जबकि पूरी दुनिया में केवल कोविड और इससे लड़ी जा रही जंग सुर्खियों में है, अमरीका से आई एक खबर ने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा है.
दरअसल, सोमवार को माइक्रोसॉफ्ट के को-फाउंडर और पूर्व सीईओ बिल गेट्स और उनकी पत्नी मेलिंडा गेट्स ने ऐलान किया कि वे शादी के 27 साल बाद तलाक लेने जा रहे हैं. बिल और मेलिंडा गेट्स के तलाक की इस खबर से पूरी दुनिया चौंक गई.
बिल गेट्स ने भले ही माइक्रोसॉफ्ट के जरिए सफलता हासिल की, लेकिन उनकी कुल संपत्ति में कंपनी की हिस्सेदारी केवल 19.6 फीसदी है.
अनुमान के मुताबिक, ये करीब 26.1 अरब डॉलर है. साथ की उनकी ज्यादातर संपत्ति अब बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से जुड़ी हुई है. गेट्स दुनिया के चौथे सबसे रईस शख्स हैं.
अब इस तलाक के साथ गेट्स की भारी-भरकम संपत्ति का क्या होगा, इसे लेकर सवाल उठने लगे हैं. बिल और मेलिंडा गेट्स किस तरह से संपत्ति का बंटवारा करेंगे, ये अहम सवाल है.
भारत में शादी एक कॉन्ट्रैक्ट नहीं
पश्चिमी देशों में प्रीनप्शल (prenuptial) एग्रीमेंट्स की व्यवस्था लंबे वक्त से चली आ रही है. हालांकि, भारत में अभी तक ऐसे नियम प्रचलन में नहीं हैं और इन्हें एक अजूबे के तौर पर देखा जाता है.
इसकी एक वजह भी है. भारत में शादी एक कॉन्ट्रैक्ट नहीं है.
हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के मुताबिक इस तरह के किसी भी समझौते को कानूनी वैधता नहीं है. हालांकि, इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 के तहत इस तरह का कॉन्ट्रैक्ट किया जा सकता है.
लेकिन, इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट भी शादी के संबंध में इस तरह के कॉन्ट्रैक्ट को मान्यता नहीं देता है.
अब चूंकि भारत में शादी एक कॉन्ट्रैक्ट नहीं है, ऐसे में आपने शायद ही किसी विवाह पूर्व समझौते या प्रीनप्शल (prenuptial) एग्रीमेंट के बारे में सुना या पढ़ा हो.
हालांकि, अगर मुस्लिम और कुछ हद तक ईसाई कानूनों की बात की जाए तो इनमें शादी को एक कॉन्ट्रैक्ट के तौर पर देखा जाता है.
हालांकि, भारत में भी हर साल तलाक के मामले बढ़ रहे हैं.
दूसरी ओर तलाक होने की स्थिति में आमतौर पर देखा जाता है कि पति और पत्नी कोर्ट में आपस में बहस में संपत्ति के बंटवारे और भत्ते के लिए झगड़ते दिखाई देते हैं.
एक-दूसरे पर आरोप लगाए जाते हैं और दोनों के लिए ही ये मानसिक तनाव बढ़ाने वाले होते हैं.
ऐसे में प्रीनप्शल एग्रीमेंट कारगर साबित हो सकते हैं. मसलन, अगर संपत्ति को लेकर चीजें पहले से तय होंगी, तलाक के बाद किसे क्या मिलना है, इसका व्यापक रूप से लिखित दस्तावेज होगा तो पति-पत्नी के अलग होने के वक्त किसी तरह के झगड़े की गुंजाइश खत्म हो जाती है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
हालांकि, कानूनी जानकारों का कहना है कि भारतीय व्यवस्था में इस तरह के prenuptial एग्रीमेंट्स की कोई जरूरत नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के वकील शाश्वत आनंद कहते हैं, “आप जिन वजहों से prenuptial एग्रीमेंट करते हैं वे सभी हिंदू मैरिज एक्ट में पहले से मौजूद हैं और इनमें तलाक से जुड़े हुए बिलकुल स्पष्ट प्रावधान हैं.”
वे कहते हैं कि हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के सेक्शन 12 और सेक्शन 13 में विवाह विच्छेद को लेकर स्पष्ट प्रावधान हैं.
शाश्वत आनंद कहते हैं, “चूंकि, शादी एक धार्मिक मसला है, ऐसे में हिंदू मैरिज एक्ट में prenuptial एग्रीमेंट की व्यवस्था नहीं है, लेकिन अगर आप ये एग्रीमेंट करना चाहते हैं तो आपको इंडियन कॉन्ट्रैक्ट एक्ट, 1872 का सहारा लेना पड़ेगा.”
वे कहते हैं कि कॉन्ट्रैक्ट एक्ट के तहत आप अपनी शादी के पहले एग्रीमेंट कर सकते हैं, लेकिन इसकी शर्त ये है कि ये एग्रीमेंट कानूनी रूप से पालन लागू किए जाने योग्य होना चाहिए.
प्रीनप्शल एग्रीमेंट में क्या होना चाहिए?
इसमें एसेट्स और लाइबिलिटीज का जिक्र होना चाहिए.
साथ ही फाइनेंशियल या मॉनेटरी पोजिशन का जिक्र इसमें होना चाहिए.
रियल एस्टेट प्रॉपर्टीज
साझा संपत्तियों का ब्योरा
संपत्तियों का बंटवारा
रखरखाव भत्ता
बच्चों की कस्टडी और बच्चों के खर्च
जीवन बीमा, मेडिकल इंश्योरेंस, क्लेम
बैंक खातों का मैनेजमेंट या संयुक्त खातों का मैनेजमेंट, घर के खर्चों का प्रबंधन और बिल जैसी चीजें
ज्वैलरी और गिफ्ट वगैरह का जिक्र
इन हालात में लागू हो सकता है प्रीनप्शल एग्रीमेंट
एग्रीमेंट या कॉन्ट्रैक्ट साफ, स्पष्ट, स्वैच्छिक और आपसी सहमति से किया गया होना चाहिए और ये लिखित दस्तावेज होना चाहिए.
इस एग्रीमेंट पर दोनों पक्षों के दस्तखत हों और इसे शादी से पहले लागू किया गया हो.
ये एग्रीमेंट या कॉन्ट्रैक्ट बलपूर्वक, डरा या धमकाकर नहीं किया गया होना चाहिए.
सबसे अहम बात कि इसे सर्टिफाइड और नोटराइज्ड कराया जाना चाहिए.
इनका क्या फायदा है?
इस तरह के एग्रीमेंट में पुरुष और महिला दोनों को समान माना जाता है. ऐसे में दोनों ही पक्ष अपनी वित्तीय संपत्तियों, लाइबिलिटीज का शादी के पहले ही खुलासा कर देते हैं. ऐसे में बाद में किसी भी कानूनी अड़चन से वे बच सकते हैं.
इसमें पुरुष और महिला की वित्तीय स्थिति स्पष्ट होने से किसी भी पक्ष के साथ तलाक के वक्त भेदभाव होने के आसार कम हो जाते हैं.
इनसे पारदर्शिता भी पैदा होती है क्योंकि इसमें दोनों पक्षों की वित्तीय स्थिति साफ होती है और किसी तरह के फ्रॉड होने की गुंजाइश कम हो जाती है.
एडवोकेट शाश्वत आनंद कहते हैं कि यहां तक कि लिव-इन में रहने वाले कपल भी एक कॉन्ट्रैक्ट कर सकते हैं और अपने राइट्स को सुरक्षित कर सकते हैं.