Van Dhan Yojana: आदिवासी और जनजातीय समुदाय को विकास से जोड़ने के लिए सरकार कई कार्यक्रम और योजनाएं चला रही है. ऐसी ही एक योजना है वन धन योजना, जो देश के वन में रहने वाले लोगों के लिए रोजगार के साथ धन की जरूरत भी पूरी करती है. अब इस योजना का लाभ दादरा और नगर हवेली व दमन और दीव के जनजातीय समुदाय भी बड़े स्तर पर ले सकेंगे. सरकार की योजना इस वर्ष के अंत तक दादरा और नगर हवेली व दमन और दीव में वन धन विकास केंद्रों की संख्या 1 से बढ़ाकर 10 तक ले जाने की है.
वन धन विकास योजना को प्रधानमंत्री द्वारा 14 अप्रैल 2018 को संविधान निर्माता बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के जन्मदिवस के मौके पर शुरू किया गया है. भारत सरकार ने जनजातीय समुदाय के लोगों को लाभान्वित करने के लिये इस योजना (Van Dhan Yojana) की शुरुआत की है. वन धन मिशन, गैर लकड़ी के वन उत्पाद का उपयोग करके जनजातियों के लिए आजीविका के साधन उत्पन्न करने की पहल है. जंगलों से प्राप्त होने वाली संपदा, जो कि वन धन है, का कुल मूल्य दो लाख करोड़ प्रतिवर्ष है.
इस पहल से जनजातीय समुदाय के सामूहिक सशक्तिकरण को प्रोत्साहन मिला है. देश के वन क्षेत्रों के जनजातीय जिलों में दो वर्ष में लगभग 3,000 वन धन केंद्र स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया है. शुरू में 50 प्रतिशत से अधिक जनजातीय आबादी वाले 39 जिलों में प्राथमिकता के आधार पर यह पहल शुरू करने का प्रस्ताव रखा गया था. अब धीरे-धीरे देश के अन्य जनजातीय जिलों में इसका विस्तार किया जा रहा है.
इस पहल का उद्देश्य प्राथमिक स्तर पर गौण वनोत्पाद (MFP) में मूल्य वृद्धि कर जमीनी स्तर पर जनजातीय समुदाय को व्यवस्थित करना है.
इस योजना के तहत जनजातीय समुदाय के वनोत्पाद एकत्रित करने वालों और कारीगरों के आजीविका आधारित विकास को बढ़ावा देने पर बल दिया जा रहा है. इस पहल के जरिए गैर लकड़ी वन उत्पादों की मूल्य श्रृंखला में जनजातीय लोगों की भागीदारी वर्तमान 20% से बढ़ाकर लगभग 60% तक ले जाना है. आपको बता दें, एमएफपी या गैर लकड़ी वनोत्पाद (एनटीएफपी) देश के लगभग 5 करोड़ जनजातीय लोगों की आय और आजीविका का प्राथमिक स्रोत है.
गौरतलब है कि देश में अधिकतम जनजातीय जिले वन क्षेत्रों में हैं. जनजातीय समुदाय पारंपरिक प्रक्रियाओं से एनटीएफपी एकत्रित करने और उनके मूल्यवर्धन में पारंगत होते हैं. यही कारण है कि स्थानीय कौशल और संसाधनों पर आधारित जनजातीय लोगों के विकास का यह आदर्श मॉडल एनटीएफपी केंद्रित है.
योजना के अनुसार, ट्राइफेड(ट्राइबल कोऑपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया) गौण वनोत्पाद (एमएफपी) आधारित बहुउद्देशीय वन धन विकास केंद्र स्थापित करने में मदद करता है. यह विकास केंद्र 10 स्वयं सेवी समूहों (एसएचजी) का केंद्र होता है, जिसमें जनजातीय क्षेत्रों में 30 एमएफपी एकत्रित करने वाले जनजातीय व्यक्ति शामिल होते हैं. एसएचजी के प्रतिनिधियों से गठित प्रबंधन समिति स्थानीय स्तर पर केंद्रों का प्रबंधन करती है.
समाज के इस वर्ग के लिए एमएफपी के महत्व का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वन में रहने वाले लगभग 10 करोड़ लोग भोजन, आश्रय, औषधि एवं नकदी आय के लिए एमएफपी पर निर्भर करते हैं. इसका महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण से भी मजबूत संबंध है क्योंकि अधिकांश एमएफपी का संग्रहण, उपयोग एवं बिक्री महिलाओं द्वारा की जाती है.
यह योजना केन्द्रीय स्तर पर जनजातीय कार्य मंत्रालय और राष्ट्रीय स्तर पर महत्त्वपूर्ण एजेंसी के रूप में ट्राइफेड के माध्यम से लागू की जा रही है. योजना के क्रियान्वयन में राज्य स्तर पर एमएफपी के लिये राज्य नोडल एजेंसी और जमीनी स्तर पर जिला कलेक्टर महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं.
इस केंद्र की स्थापना का मुख्य लक्ष्य कौशल में बढ़ावा तथा क्षमता निर्माण प्रशिक्षण प्रदान करना है. इसके अलावा शुरुआती प्रोसेसिंग एवं मूल्य संवर्द्धन सुविधा केंद्र के रूप में वन धन केंद्रों की स्थापना करना है. आरंभ में इस केंद्र में टामारिंड ईंट निर्माण, महुआ फूल भंडारण केंद्र तथा चिरौंजी को साफ करने एवं पैकेजिंग के लिए प्रोसेसिंग सुविधा रखी गई. आरंभ में वन धन विकास केंद्र की स्थापना एक पंचायत भवन में की गई थी, जिससे कि प्राथमिक प्रक्रिया की शुरुआत एसएचजी द्वारा की जा सके. इसके अपने भवन के पूर्ण होने के बाद केंद्र उसमें स्थानांतरित किया गया है.
वन धन विकास केंद्र एमएफपी के संग्रह में शामिल जनजातियों के आर्थिक विकास में मील का पत्थर सिद्ध हो रहे हैं, जो उन्हें प्राकृतिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग करने और एमएफपी समृद्ध जिलों में टिकाऊ एमएफपी आधारित आजीविका अपनाने में सहायता कर रहे हैं.
(प्रसार भारती न्यूज सर्विस)