प्रोफेशनल या निजी वजहों से देश के बाहर जाने वालों ने कभी ये सोचा नहीं होगा कि उन्हें कभी इस तरह के हालात का भी सामना करना पड़ेगा. तमाम दिक्कतों के बाद लोग वैक्सीन लगवा पा रहे हैं, लेकिन इन्हें कुछ बेहद संरक्षणवादी रवैया अपना रहे पश्चिमी देशों की वजह से विदेश जाने में मुश्किल हो रही है. एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) की बनाई जा रही कोवीशील्ड के पास EU में मार्केटिंग ऑथराइजेशन नहीं है और ये एक बड़ी अड़चन साबित हो रहा है. जिन लोगों ने कोवैक्सीन लगाई है उन्हें भी ट्रैवल में दिक्कतें हो रही हैं. नागरिकों को इस वजह से परेशानी नहीं होने देनी चाहिए.
इस मुश्किल हालात से निपटने के लिए पूरी दुनिया को ज्यादा समावेशी होना चाहिए.
EU की एप्रूव की गई चार वैक्सीन्स को छोड़कर WHO ने कोवीशील्ड और साइनोफार्म और साइनोवैक वैक्सीन को इमर्जेंसी यूज के तहत मान्यता दी है.
डेल्टा वैरिएंट के चलते भारत अभी भी ज्यादातर देशों में आने वाले यात्रियों के लिहाज से ब्लैकलिस्टेड है. कोवीशील्ड उन चार वैक्सीन्स में से है जिन्हें भारत के ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने इमर्जेंसी यूज ऑथराइजेशन दिया है. देश में लगने वाली हर 10 डोज में से 9 डोज कोवीशील्ड की हैं.
SII के चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर आदार पूनावाला ने कोवीशील्ड को लेकर किसी भी संदेह को पूरी तरह से खारिज किया है. उन्होंने कहा है कि कंपनी को उम्मीद है कि एक महीने के भीतर इसे यूरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी से एप्रूवल मिल जाएगा.
यूरोपीय यूनियन (EU) ग्रीन पास जारी कर रहा है जिससे ये तय होता है कि कौन EU के सदस्य देशों में बिना रोक-टोक आवाजाही कर सकता है. भारत की कोई भी वैक्सीन इस लिस्ट में नहीं हैं. कोवीशील्ड को इससे बाहर रखने का मतलब समझ नहीं आता क्योंकि ये एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड क वैक्सीन है जिसे भारत में विकसित किया गया है.
दिलचस्प बात ये है कि रिपोर्ट्स के मुताबिक, EMA ने कहा है कि उसे सीरम इंस्टीट्यूट से अभी तक कोई एप्लिकेशन नहीं मिली है.
ये अनिश्चितता लंबे वक्त तक जारी नहीं रहनी चाहिए क्योंकि कोवीशील्ड को WHO ने एप्रूव किया है और EU मेंबर देश इसे क्लीयर कर सकते हैं. जो भी वजह हो सरकार को स्टेकहोल्डर्स को इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए बोलना चाहिे और विदेश जाने की योजना बना रहे लोगों की चिंताओं को दूर करना चाहिए.