गोस्तो बिहारी पाल (1896-1976) को फुटबॉल में उनकी डिफेंडिंग स्किल के लिए प्यार से चाइनीज वॉल बुलाया जाता था. वे पद्म श्री पाने वाले पहले फुटबॉलर थे. तोक्यो ओलंपिक्स के बाद महिला हॉकी टीम की गोलकीपर सविता पूनिया को भी ऐसे ही टाइटल से पुकारा जा सकता है.
पूनिया को रोजाना प्रैक्टिस के लिए जाते वक्त बस की छत पर किट रखकर ले जाना पड़ता था. उन्हीं की टीम की कप्तान रानी रामपाल एक ठेली-खींचने वाले की बेटी हैं. पूनिया और रामपाल अपने में अकेली नहीं हैं. तोक्यो ओलंपिक्स में देश का नाम रौशन करने वाले कई खिलाड़ी गरीब परिवारों से आते हैं. सामाजिक और वित्तीय स्तर पर उन्होंने कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद उन बुलंदियों को हासिल किया है, जिसका जशन आज देश मना रहा है.
इन खिलाड़ियों ने जो हासिल किया है, वह पूरी तरह से उनके टैलेंट की बदौलत है. मेडल की लालसा रखने वाला देश उनके प्रदर्शन के बल पर स्पोर्ट्स की तस्वीर बदलने में लग गया है. उनपर ईनामों की बारिश की जा रही है. सरकार को अब यह करना चाहिए कि उन्हें मिल रहे रिवॉर्ड्स पर इनकम टैक्स की छूट दे.
स्पोर्ट्स के इन हीरो में ज्यादातर ने गरीबी देखी है. स्पॉन्सरशिप के बगैर वे आगे बढ़ते रहे हैं. कुछ ने तो सामाजिक भेदभाव को भी झेला है. ऐसी चीजें किसी का भी मनोबल तोड़ सकती हैं. इनकम टैक्स में छूट देने का छोटा सा कदम न सिर्फ उन्हें वित्तीय समर्थन देगा, बल्कि भविष्य में भी अच्छा प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित करेगा. साथ ही ऐसे टैलेंट्स को अब तक सपोर्ट नहीं कर पाने का पछतावा भी शायद कुछ घट जाए.
खेल की कीमत चंद मेडलों से बड़ी है. स्पोर्ट्स से हमेशा किसी देश को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है. ऐसे में खिलाड़ियों की अहमियत खेल के दायरे के बाहर भी बहुत बड़ी है. वक्त आ गया है कि उसी हिसाब से उनकी इज्जत की जाए.