2 फरवरी 1938 को एक मीटिंग में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति एफ डी रूजवेल्ट ने ट्रांसकॉन्टिनेंटल हाइवेज बनाने का एक ब्लूप्रिंट रखा था. वे इसके जरिए देश की औद्योगिक प्रगति को एक नया मुकाम देना चाहते थे. ये योजना कितनी परवान चढ़ी और इसका क्या वाकई फायदा हुआ, ये इतिहास पर नजर डालने से पता चलता है. लेकिन, ऐसी ही एक महत्वाकांक्षी योजना गति शक्ति प्लान को इस हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉन्च किया है. आर्थिक विकास का एक बड़ा जरिया सड़कें होती हैं. ऐसे कई उदाहरण हैं जहां प्रमुख सड़कों की वजह से निवेश आता है और इससे जुड़े इलाकों में इंफ्रा डिवेलपमेंट होता है और बड़े पैमाने पर रोजगार के मौके उत्पन्न होते हैं.
अमरीकी प्लान के आठ दशक बाद भारतीय ब्लूप्रिंट में मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्ट की बात की गई है और इसमें केवल सड़कें शामिल नहीं हैं. बेहतर कनेक्टिविटी से तेज आर्थिक विकास का मौका पैदा होता है. इससे बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर भी खड़ा होता है और लोगों को नौकरियां मिलती हैं.
इस प्लान में 11 औद्योगिक कॉरिडोर्स और 2 डिफेंस कॉरिडोर्स के बीच इंटरकनेक्टिविटी की बात की गई है. साथ ही इसमें 220 एयरपोर्ट, हैलिपैड और वॉटर एयरोड्रम के साथ ही 2 लाख किमी का NH नेटवर्क बनाने की भी बात है. इसमें कार्गो हैंडलिंग कैपेसिटी बढ़ाने, सभी गांवों में 4G कनेक्टिविटी, 17000 किमी गैस पाइपलाइन और 200 से ज्यादा फिशिंग क्लस्टर बनाने जैसे प्लान भी हैं.
इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए मंत्रालयों के बीच एक नजदीकी सहयोग की जरूरत होगी. इस प्लान को 2024-25 तक पूरा किया जाना है. इसी साल देश में आम चुनाव भी होने हैं.
गति शक्ति प्रोजेक्ट से भारत के लिए बड़े पैमाने पर आर्थिक संपत्तियां खड़ी हो सकती हैं. हालांकि, 100 लाख करोड़ रुपये के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि इसमें निजी सेक्टर की कितनी भागीदारी होगी.
अगर इसे सुनिश्चित किया जा सके तो इससे देश के आर्थिक विकास को गति और शक्ति दोनों मिलेगी. हाइवेज का जाल, टेली कनेक्टिविटी, पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर का मजबूत होना, गैस पाइपलाइन नेटवर्क जैसे काम इस प्रोजेक्ट में शामिल हैं. इसके साथ ही केंद्र और राज्यों के अलग-अलग मंत्रालयों के बीच समन्वय होना भी एक बड़ी चुनौती है.