बीमा पॉलिसी में क्यों नहीं छुपानी चाहिए हेल्थ से जुड़ी कोई जानकारी?

जब हम कोई टर्म इंश्योरेंस प्लान खऱीदते हैं तो 8-10 पेज का प्रपोजल फॉर्म भरना होता है. इसे देखकर लोग परेशान हो जाते हैं. लोग इस फॉर्म को भरने का शॉर्ट कट तलाशने लगते हैं.

बीमा पॉलिसी में क्यों नहीं छुपानी चाहिए हेल्थ से जुड़ी कोई जानकारी?

क्लेम लेने के वक्त अगर बीमा कंपनी को स्वास्थ ये जुड़ी ऐसी कोई बात पता चले जिसका जिक्र प्रपोजल फॉर्म में न हो उसे नॉन-डिसक्लोजर माना जाएगा. (Photo Credit: Freepik)

क्लेम लेने के वक्त अगर बीमा कंपनी को स्वास्थ ये जुड़ी ऐसी कोई बात पता चले जिसका जिक्र प्रपोजल फॉर्म में न हो उसे नॉन-डिसक्लोजर माना जाएगा. (Photo Credit: Freepik)

जब हम कोई टर्म इंश्योरेंस प्लान खऱीदते हैं तो 8-10 पेज का प्रपोजल फॉर्म भरना होता है. इसे देखकर लोग परेशान हो जाते हैं. लोग इस फॉर्म को भरने का शॉर्ट कट तलाशने लगते हैं. कैसे ये जल्दी निपटाया जाए और ऐसे में जब बीमा एजेंट पर छोड़ देते हैं. अभिजित ने भी अपने बीमा एजेंट रोहित के कहने पर फॉर्म पर साइन करके पकड़ा दिया.

अगर आप भी कोई बीमा खरीद रहे हैं तो अभिजित जैसी गलती कतई न करें. बीमा एजेंट के भरोसे यूं ही फॉर्म भर देंगे तो आगे जाकर आपका परिवार बुरी तरह फंस सकता है. पॉलिसी होल्डर के न रहने पर गलत भरे प्रपोजल फॉर्म के बिनाह पर क्लेम रिजेक्ट हो सकता है. टर्म इंश्योरेंस प्लान इसलिए खरीदा जाता है कि अगर घर का कमाई करने वाला गुजर जाए तो घर वालों को आर्थिक मदद मिल सके. लेकिन अगर ये मदद उन तक पहुंचे ही न तो ऐसा बीमा किस काम का? सालों साल तक प्रीमियम चुकाना बेकार हो जाएगा.

तो खारिज हो जाएगा क्लेम?

क्लेम लेने के वक्त अगर बीमा कंपनी को स्वास्थ ये जुड़ी ऐसी कोई बात पता चले जिसका जिक्र प्रपोजल फॉर्म में न हो उसे नॉन-डिसक्लोजर माना जाएगा. मतलब कि पॉलिसी खरीदने वाले ने तथ्य बताए नहीं या बीमारी और इलाज छिपाया. पॉलिसी की शर्तों में साफ लिखा होता है कि अगर कोई तथ्य छुपाया और बाद में उसका खुलासा हुआ तो क्लेम खारिज कर दिया जाएगा. बीमा कंपनी ग्राहक की पुरानी बीमारियों के अलावा उनकी जीवन शैली और आदतों से जुड़े सवाल पूछती है. इन सवालों का हां और न जवाब लिखा जाता है. इसे आपको पूरी सचाई से बताना चाहिए.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

पर्सनल फाइनेंस एक्सपर्ट विरल भट्ट कहते हैं कि आपको प्रपोजल फॉर्म में हेल्थ कंडीशन तो सचाई से बतानी चाहिए. साथ ही इसमें आगर कोई बदलाव आए जैसे कि कोई जालनेवा बीमारी हो जाए तो इसकी जानकारी भी जीवन बीमा कंपनी को दें..कंपनी को आपके बारे में जानकारी रहनी चाहिए. पुरानी बीमारी या ट्रीटमेंट के बारे में प्रपोजल फॉर्म में जानकारी देने पर कंपनी बीमा मना नहीं करती बल्कि प्रीमियम की कुछ कॉस्ट बढ़ा देती है. जानकारी छुपाकर बीमा को सस्ता करना आगे जाकर महंगा पड़ सकता है.

ये भी दें जानकारी

एल्कोहल और धूम्रपान जैसी आदतों को लेकर सतर्क रहें. जब बीमा खरीदा तब एल्कोहल और धूम्रपान का सेवन नहीं करते थे लेकिन आगे जाकर करने लगे तो ऐसे में इसकी जानकारी बीमा कंपनी को देनी चाहिए.अगर पॉलिसी खरीदने के बाद एल्कोहल या धूम्रपान से जुड़ी कोई जानलेवा बीमारी में जान चली जाए तब भी बीमा कंपनी क्लेम खारिज कर सकती है. कंपनी को पता होगा तो ज्यादा प्रीमियम वसूल सकती हैं या फिर पॉलिसी बंद कर सकती हैं लेकिन कम से कम आपको जीते जी पता तो होगा कि आपके बीमा का स्टेटस क्या है.

टर्म इंश्योरेंस खरीदना जरूरी है लेकिन इसे खरीदने का तरीका भी सही होना चाहिए. आपको टर्म इंश्योरेंस का प्रपोजल फॉर्म खुद भरना चाहिए. इसमें किसी जानाकारी को छुपाएं नहीं. पुरानी बीमारी और इलाज की जानकारी दें. लाइफसटाइल और आदतों की जानकारी भी सही भरें. अगर एजंट से फॉर्म भरने में मदद ल रहें हैं तो फ्रॉर्म को खुद क्रॉस चेक किए बिना जमा न करें.जितने सच्चाई से प्रपोजल फॉर्म भरेंगे परिवार वालों को क्लेम मिलने में आसानी रहेगी.

Published - May 7, 2023, 09:00 IST