'म्यूचुअल फंड सही, लेकिन निगरानी जरूरी'

निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो की विभिन्न एसेट क्लास का रिव्यू और रिबैलेंसिंग कितने समय के अंतराल पर करना चाहिए?

'म्यूचुअल फंड सही, लेकिन निगरानी जरूरी'

निवेशकों के लिए निवेश से जुड़े सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार करना समझदारी भरा कदम होता है. लेकिन निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो की विभिन्न एसेट क्लास का रिव्यू और रिबैलेंसिंग कितने समय के अंतराल पर करना चाहिए? इस पर मेरा मानना है कि 5 साल में अपने पोर्टफोलियो पर एक बार नज़र जरूर डाल लेनी चाहिए. दरअसल, इन पांच साल में व्यक्ति की जरूरतें, परिस्थितियां और लक्ष्य बदल जाते हैं. इसके अलावा निवेश के विकल्प, प्रोडक्ट्स और उनके पुनर्मूल्यांकन के लिए भी यह अच्छी अवधि होती है. ऐसे में निवेशकों को गैर जरूरी बातों पर ध्यान देने के बजाए जिन बातों से उन्हें फायदा हो रहा है उस पर ध्यान देना चाहिए.

निवेशक चाहे तो तो 5 साल की अवधि के दौरान नुकसान वाले पोर्टफोलियो को बेच सकता है. हालांकि रिबैलेंसिंग का समय आने से पहले पूरी अवधि के दौरान इनको खरीदना और रोके रखना बेहतर रहता है. कोई वास्तविक कारण जैसे बाजार या फंड से जुड़ी कोई खबर या कोई निजी जरूरत जिसके लिए पोर्टफोलियो में बदलाव करना, न हो, तो मैं सरप्लस फंड लगाकर अपने मौजूदा असेट अलोकेशन को बढ़ाती रहती हूं. आइए आपको म्यूचुअल फंड पोर्टफोलियो रिबैलेंसिंग (MF Portfolio Rebalancing) के प्रमुख बातों से अवगत कराते हैं. मेरे अपने निजी अनुभव के आधार पर इसको 8 बिंदु से समझा जा सकता है.

म्यूचुअल फंड/AMC का चयन करना
एक फंड हाउस की सीईओ होने की वजह से मुझसे अक्सर पूछा जाता है कि क्या मेरा सारा निवेश एडलवाइस फंड में है? तो इसमें कोई शक नहीं कि काफी हद तक मेरा पोर्टफोलियो एडलवाइस में है, लेकिन मेरे पास अन्य एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMC) के म्यूचुअल फंड भी हैं. अगर बाहरी फंड के चयन की बात करूं तो मेरी नज़र में सबसे पहला पैमाना फंड मैनेज करने वाली टीम की क्षमता है. दरअसल, म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए यह सबसे जरूरी होता है. इंडस्ट्री से जुड़े होने की वजह से मेरे लिए व्यावहारिक जानकारी हासिल करना आसान है, जिससा मुझे अतिरिक्त लाभ मिलता है. प्रत्येक AMC के पास विशेषज्ञता का अपना दायरा होता है जैसे मिडकैप, वैल्यू या ग्रोथ. ऐसे में फंड/AMC का चयन इसके अनुसार ही करना चाहिए.

AMC/फंड साइज
मेरी नज़र में AMC का साइज कितना है इसका कोई मायने नहीं है. मैंने बड़ी AMC को छोटी AMC से कमजोर प्रदर्शन करते हुए और छोटी AMC को मीडियम साइज की AMC बनते हुए देखा है. इस संदर्भ में देखें तो म्युचुअल फंड स्कीम साइज काफी मायने रखता है. ऐसी स्कीम पर खासकर स्मॉल कैप श्रेणी पर ध्यान देने से बचना चाहिए, जिसका जिसका साइज बहुत बढ़ गया है, फिर वह चाहे उसका प्रदर्शन कितना भी अच्छा रहा दर्ज किया गया हो.

स्टार रेटिंग से फर्क नहीं
मेरा मानना है कि स्टार रेटिंग कोई मायने नहीं रखता है. मेरे नए पोर्टफोलियो में ऐसा कोई फंड नहीं है जो पोर्टल रैंकिंग या 5-स्टार रैंकिंग में सबसे ऊपर हो या सबसे ज्यादा चर्चा में रहा हो. मैं लगातार अच्छा प्रदर्शन करने वालों को शॉर्टलिस्ट करती हूं और उनमें से अपनी पसंदीदा फंड का चुनाव करती हूं. एक 4-स्टार फंड जो अभी तक चार्ट के शीर्ष पर नहीं है, उसके नीचे जाने की संभावना नहीं है. मेरी नज़र में सबसे अच्छे प्रदर्शन की तुलना में निरंतरता बनाए रखना बेहतर है.

SIP की राशि की समीक्षा जरूरी
महीने के आधार पर SIP प्रबंधन का अच्छा नतीजा निकलता है. SIP की वजह से मेरा निवेशक के तौर पर प्रदर्शन तकरीबन हमेशा फंड के प्रदर्शन से बेहतर रहा है, क्योंकि जब बाजार में गिरावट आती है तो मैं यूनिट्स इकट्ठा करती रहती हूं और यह तरीका कारगर है. यहां तक कि SIP का प्रदर्शन भी काफी उत्साहजनक है जो बीएएफ श्रेणियों में 14 फीसद से ज्यादा और मिडकैप श्रेणियों में 18 फीसद से ज्यादा है. एक और सीख यह है कि निवेशकों को अपनी SIP राशि की समीक्षा करते रहना चाहिए. बढ़ती आय के साथ हम अक्सर अपने एसआईपी को नहीं बढ़ाते हैं. निवेशकों को कर चुकाने के बाद बची राशि पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए. साथ ही समय-समय पर समीक्षा करना चाहिए और आप जितना निवेश बढ़ा सकते हैं उतना बढ़ाते रहना चाहिए.

डायवर्सिफिकेशन अच्छा विकल्प
एडलवाइस के अलावा मैं किसी AMC की एक से अधिक स्कीम में निवेश नहीं करती हूं. मैं एक खास फंड हाउस की तलाश करने का प्रयास करती हूं. दरअसल, डायवर्सिफिकेशन का मतलब निवेश संबंधी विभिन्न दृष्टिकोणों और विचारों के बारे में जानकारी रखना है जो अलग-अलग समय पर प्रदर्शन करते हैं. सक्रिय फंड बनाम निष्क्रिय फंड में से चुनना हो तो मैं अभी भी सक्रिय फंड पसंद करती हूं. हालांकि मैंने फ्लेक्सी या लार्ज और मिडकैप श्रेणी में एक निष्क्रिय फंड, यानी एडलवाइस निफ्टी लार्ज मिड कैप 250 इंडेक्स फंड शामिल किया है. मेरा मिडकैप, स्मॉलकैप और बीएएफ एक्सपोजर पूरी तरह से सक्रिय है और मैं इसमें सहज महसूस करती हूं.

इक्विटी एक्सपोजर कम
अपने एसेट एलोकेशन को लेकर मेरा नज़रिया पुराने किस्म का है. इसका मतलब है कि मेरी अधिकांश म्यूचुअल फंड स्कीम्स का इक्विटी एक्सपोजर कम रहा है यानी स्टॉक का मूल्य घटने पर पैसे गंवाने का जोखिम कम रहा है. मेरा सोचना थोड़ा ज्यादा महत्वाकांक्षी भी है, क्योंकि मेरे लक्ष्यों में अब घर बनाने जैसा प्रमुख लक्ष्य शामिल नहीं है. अपने बेटे की कॉलेज की पढ़ाई के लिए धन जुटाने के लिए भी मैंने एक अलग पोर्टफोलियो बनाया है.

जटिल किस्म के प्रोडक्ट्स से बचें
किसी व्यक्ति का निवेश को लेकर महत्वाकांक्षी नज़रिया हो सकता है, लेकिन पोर्टफोलियो में जटिल प्रोडक्ट्स या क्लोज-एंडेड यानी निर्धारित समयावधि वाले फंड से बचना बेहतर रहता है. निवेश करने या भुनाने की प्रक्रिया को आसान बनाने पर कम ध्यान दिया गया है. जिस प्रोडक्ट में आप निवेश करते हैं, उसके बारे में आपकी अपनी समझ भी होनी चाहिए और रिडेम्पशन प्रोसेस यानी फंड भुगतान प्रक्रिया की भी अच्छी समझ होनी चाहिए. लिक्विडिटी यानी नकद भुगतान महत्वपूर्ण है.

डिस्क्लेमर: राधिका गुप्ता एडलवाइस एसेट मैनेजमेंट लिमिटेड (ईएएमएल) की एमडी और सीईओ हैं और ऊपर व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं.

म्यूचुअल फंड निवेश बाजार से जुड़े जोखिमों के अधीन है, योजना से संबंधित सभी दस्तावेजों को ध्यानपूर्वक पढ़ें.

Published - September 13, 2023, 06:59 IST