राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद (President Ram Nath Kovind) ने सोमवार को वाराणसी में ”गंगा, पर्यावरण और भारत की संस्कृति” के मुद्दों पर जागरण मंच के उद्घाटन सत्र में हिस्सा लिया. इस दौरान उन्होंने (President Ram Nath Kovind) अपने संबोधन में कहा कि मेरा मानना है कि गंगा और हमारी संस्कृति एक दूसरे पर आधारित रहे है. मां गंगा का शुद्ध होना, हमारे पर्यावरण की स्वच्छता का एक महत्वपूर्ण मापदंड है.“गंगा, पर्यावरण और संस्कृति” का संरक्षण और संवर्धन हमारे देश के विकास का आधार है.
बाबा विश्वनाथ से लिया सभी देशवासियों के स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद
संबोधन की शुरुआत में उन्होंने (President Ram Nath Kovind) कहा कि इस यात्रा के दौरान मुझे बाबा विश्वनाथ के दर्शन का सौभाग्य मिला. सही मायने में वाराणसी या बनारस हम कहें तो उसकी पहचान बाबा विश्वनाथ से होती है. मां गंगा की संध्या आरती में भाग लेने का अवसर भी मिला. बाबा विश्वनाथ से मैंने सभी देशवासियों के स्वास्थ्य और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त किया. मैं स्वयं को कृतार्थ अनुभव कर रहा हूं.
बनारस में एक अनूठी परंपरा, सभी को इसे करीब से जानने की जरूरत
राष्ट्रपति ने कहा, पिछले गुरुवार के दिन पूरे देशभर में या यूं कहें कि पूरे विश्व में श्रद्धालुओं ने महाशिवरात्रि का पर्व मनाया. हम सब जानते हैं कि शिव का अर्थ ही होता है कल्याण. मुझे बताया गया है कि बनारस में एक अनूठी परंपरा है जिसका उल्लेख मैं करना चाहता हूं. यहां महा शिवरात्रि के अवसर पर शिवजी की एक बारात निकलती है जिसमें समाज के हर वर्ग के लोग बड़ी संख्या में शामिल होते हैं और यही इसकी विशेषता है.
शिवजी की बारात एक समावेशी समूह की कल्पना पर आधारित
शिवजी की बारात एक समावेशी समूह की कल्पना पर आधारित है. प्राय: जब किसी की बारात निकलती है तो उसी वर्ग या उसी समुदाय के लोग एकत्रित होकर बारात में भागीदार बनते हैं लेकिन शिव की बारात में समाज के हर वर्ग के लोग शामिल होते हैं. इसमें हर समुदाय के लोगों का मानना होता है कि जो शिवजी दूल्हा बने हैं वह अपने परिवार का ही दुल्हा हैं. ऐसे में हर कोई अपने को शिव से जोड़ता है. उस बारात में शामिल होने के लिए साज-सज्जा की भी जरूरत नहीं होती है. ये सहजता ही बनारस को दूसरे शहरों से अलग करती है.
गंगा और हमारी संस्कृति का अस्तित्व एक-दूसरे पर निर्भर
‘गंगा, पर्यावरण और संस्कृति’ विषय पर हम चर्चा करने के लिए एकत्रित हुए हैं उसे लेकर मेरा मानना है कि गंगा और हमारी संस्कृति एक-दूसरे पर आधारित है. इनको अलग नहीं किया जा सकता। ये एक-दूसरे के पूरक हैं या यूं कहें कि इनका अस्तित्व एक-दूसरे पर निर्भर है. मैं स्वयं को भी मां गंगा की करोड़ों संतानों में से ही एक मानता हूं. मेरा जन्म गंगा के किनारे बसे कानपुर देहात के एक गांव में हुआ. मेरा बचपन, छात्र-जीवन और युवावस्था, सभी गंगा के सानिध्य में ही बीते हैं.
गंगा की पवित्रता का अर्थ
वस्तुत: हमारे जीवन मूल्यों में गंगा की पवित्रता का अर्थ है कि हम मन, वचन और कर्म से शुद्ध बने, गंगा की निर्मलता का अभिप्राय है कि हम निर्मल हृदय के साथ जीवन बिताएं और गंगा की अविरलता का तात्पर्य है कि बिना रुके हुए अपने जीवन पथ पर हम सतत आगे बढ़ते रहे.
गंगा को केवल सिर्फ एक नदी के रूप में देखना पर्याप्त नहीं
गंगा को केवल सिर्फ एक नदी के रूप में देखना पर्याप्त नहीं है. गंगा भारतीय संस्कृति की जीवनधारा है तथा अध्यात्म और आस्था की संवाहिका है. वस्तुत: गंगा भारतवासियों की पहचान है और यह जन-भावना ही एक लोकप्रिय गीत में समाहित है और परिलक्षित भी होती है:
हम उस देश के वासी है जिस देश में गंगा बहती है
हम उस देश के वासी है जिस देश में गंगा बहती है. गंगा से लगाव के अद्भुत उदाहरण बिस्मिल्ला खां साहब के संस्मरणों में पाए जाते है. उनसे कई संगीत-प्रेमी उन्हें मुंबई में बसने का अनुरोध किया करते थे। खां साहब कहा करते थे ‘ले तो जाओगे, लेकिन वहां गंगा कहां से लाओगे. गंगा तथा उसकी सहायक नदियों का क्षेत्र देश के ग्यारह राज्यों में फैला हुआ है और इसे ‘गंगा रिवर बेसिन’ का नाम दिया गया है. एक आकलन के अनुसार, इस क्षेत्र में देश की 43 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है. यह सबसे घनी आबादी वाला क्षेत्र भी है.