गुरुवार को पांच डेमोक्रेटिक सीनेटरों ने अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन से अनुरोध किया है कि वे पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रंप के H-1B Visa समेत नॉन-इमीग्रेंट वीजा पर लगाए गए बैन को रद्द कर दें. इन सीनेटरों ने मांग की है कि इस बैन के चलते अमरीकी कंपनियों और इनके विदेश में पैदा हुए प्रोफेशनल वर्कर्स और उनके परिवारों के सामने अनिश्चितता का माहौल पैदा हो गया है. गौरतलब है H-1B Visa खासतौर पर भारतीय IT प्रोफेशनल्स में बेहद लोकप्रिय है.
जून 2020 में ट्रंप ने एक नियम (प्रोक्लेमेशन 10052) बनाया था और इसके तहत नॉन-इमीग्रेंट् H-1B, L-1, H-2B और J-1 Visa की प्रक्रिया को रोक दिया था. अमरीकियों को ज्यादा रोजगार मुहैया कराने के मकसद से यह कदम उठाया गया था.
हालांकि, प्रोक्लेमेशन 10052 इसी साल 31 मार्च को खत्म हो जाएगा, लेकिन कंपनियों ने संकेत दिए हैं कि अगर इसे लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया तो उनके कारोबारों और आर्थिक रिकवरी को और ज्यादा नुकसान होगा.
इन सीनेटरों ने कहा है कि चूंकि प्रोक्लेमेशन 10052 के चलते जिन Visa पर रोक लगाई गई है वे ज्यादातर कम बेरोजगारी वाले प्रोफेशंस में आते हैं या फिर इनके जरिए यह शर्त रखी जाती है कि H-1B Visa समेत दूसरे विदेशी वर्क वीजा होल्डर किसी अमरीकी वर्कर की नौकरी नहीं लेंगे, ऐसे में विदेशी कर्मचारियों के सहारे चल रही कंपनियों को बेरोजगारी बढ़ने के बावजूद भर्तियां कर पाना मुश्किल हो रहा है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, सीनेटर माइकल बेनेट, जीन शाहीन, एंगस किंग, कोरी बुकर और बॉब मेनेंडेज ने कहा है कि इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी जैसे सेक्टरों में नौकरियां अभी भी बनी हुई हैं या फिर ये नौकरियां देश के बाहर चली गई हैं. ये नौकरियां मोटे तौर पर H-1B Visa होल्डर्स को मिलती हैं.
H-1B Visa एक नॉन-इमीग्रेंट वीजा होता है जो कि अमरीकी कंपनियों को सैद्धांतिक या तकनीकी विशेषज्ञता वाले पेशों में विदेशी वर्कर्स को नौकरी देने की इजाजत देता है.
टेक्नोलॉजी कंपनियां भारत और चीन जैसे देशों से हर साल हजारों एंप्लॉयीज को इसी H-1B Visa के जरिए भर्ती करती हैं.
इन सीनेटरों ने राष्ट्रपति बाइडन को लिखी चिट्ठी में कहा है, “इस बैन के जारी रहने से अमरीकी कंपनियों, उनके विदेशी मूल के प्रोफेशनल वर्कर्स और उनके परिवारों के सामने अनिश्चितता पैदा हो रही है.”
इन्होंने लिखा है, “टैलेंटेड लोगों को युनाइटेड स्टेट्स बुलाने की बजाय इस बैन को बनाए रखने से दूसरे देशों के टैलेंट को अपने देश में लाना मुश्किल हो गया है.”