इक्कीसवीं सदी के शुरुआती वर्षों में ही भारत पश्चिमी देशों के लिए आईटी आउसोर्सिंग केंद्र बन गया था, हालांकि पिछले एक दशक में भारतीय टैलेंट पूल ने आईटी सेवाओं के अलावा भी कई तरह के कार्यों में अपनी छाप छोड़ी है. पश्चिमी देश अब ऑडिट, फाइनेंस, एचआर, मार्केटिंग एनालिटिक्स जैसे कई दूसरे कार्य भी भारत से आउटसोर्स कर रहे हैं. पश्चिमी देशों में जैसे-जैसे कामगारों की कमी गहरा रही है, वहां की कंपनियां ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स यानी GCCs स्थापित करती जा रही हैं. भारत में पश्चिमी देशों की कंपनियां हर पांच दिन पर ऐसा एक GCC स्थापित कर रही हैं और फिलहाल ऐसे करीब 1600 GCCs काम कर रहे हैं. GCC की यह तेजी ऐसे ही बरकरार रही तो आज से पांच साल के बाद यह भारत के जीडीपी में 20 अरब डॉलर की बढ़ोतरी कर सकता है यानी जीडीपी के करीब आधा फीसद तक.
Tom Friedman ने अपनी किताब The World is Flat: A Brief History of the Twenty-First Century (2005)
में लिखा है…
”लड़कियों जब मैं बड़ा हो रहा था तो मेरे मां-बाप अक्सर मुझसे कहते थे, टॉम अपना डिनर खत्म कर लो, चीन और भारत में लोग भूखों मर रहे हैं..
लेकिन मेरी आपको यह सलाह है: लड़कियों अपना होमवर्क पूरा कर लो चीन और भारत में लोग आपकी नौकरियों के भूखे हैं…
और एक सपाट दुनिया में वे इस हासिल भी कर सकते हैं क्योंकि ऐसी दुनिया में अब अमेरिकी नौकरी जैसी कोई चीज नहीं बची. अब यह सिर्फ नौकरी है और ज्यादातर मामलों में ऐसा हो सकता है कि यह सबसे अच्छे, स्मार्ट, सबसे उत्पादक या कम पैसे लेने वाले कामगार को मिले, चाहे वह कहीं भी रहता या रहती हो.”
कैसे अब नए तरह के आउटर्सोर्सिंग का केंद्र बन रहा भारत?
नब्बे के समूचे दशक में और इसके बाद भारत सभी चीजों की आईटी और आईटी सेवाओं के बैक एंड प्रोसेसर के रूप में उभरा.. यह मुख्यत: इस वजह से हो सका क्योंकि नई सहस्त्राब्दि में पहली बार दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने में इंटरनेट पर सूचनाओं का आदान-प्रदान काफी तेज और सस्ता हो गया. इस बदलाव ने दुनियाभर में कारोबारों के लिए इस बात के असीम अवसर पैदा किए कि वह किफायती तरीके से अपने कामकाज का विस्तार कर सकें और भारी मुनाफा कमा सकें. इस ट्रेंड का भारत को भारी फायदा हुआ क्योंकि यहां के सस्ते लेकिन कुशल कामगार वैश्विक दिग्गज कंपनियों के लिए आईटी सेवाओं को संभालने में सक्षम थे.
मैकिंसी और नैस्कॉम की साल 2005 में आई एक संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया था कि कुल ऑफशोर आईटी इंडस्ट्री का करीब 65 फीसदी और ग्लोबल बिजनेस प्रोसेस ऑफशोरिंग यानी बीपीओ का 46 फीसदी हिस्सा भारत से ही संचालित होता है.
इसके बाद के 17 वर्षों में आउसोर्सिंग के केंद्र के रूप में भारत की स्थिति और मजबूत ही हुई है. नैस्कॉम के मुताबिक भारत में करीब 1600 ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर स्थापित किए गए हैं जिनमें करीब 20 लाख लोगों को रोजगार मिला है और इनसे सालाना करीब 50 अरब डॉलर की आय होती है.
दिलचस्प यह है कि भारत में जब यह सब हो रहा है तो पश्चिमी देश कामगारों के भारी संकट से जूझ रहे हैं. लॉकडाउन के दौर खत्म होने के बाद जब पश्चिमी अर्थव्यवस्थाएं पटरी पर लौट रही हैं और उनके नागरिकों में जरूरी कौशल वाले लोगों की तंगी है, वहां नौकरी की वेकेंसी की दर काफी तेजी से बढ़ रही है.
अमेरिका भी इसी तरह के कामगारों की तंगी से गुजर रहा है, जहां कोविड महामारी के बाद बहुत से लोगों ने काम पर वापस जाना पसंद नहीं किया. दूसरी तरफ, अगर हम आपूर्ति पक्ष को देखें तो डेटा ये पता चलता है कि रोजगार के अवसर बेरोजगारी दर से काफी ज्यादा हैं, इसका मतलब यह है कि जो लोग काम करना चाहते हैं उन्हें काम मिल रहा है, लेकिन मांग देश में उपलब्ध कामगारों की संख्या से ज्यादा है.
इसके अलावा, कुशल कामगारों की तंगी का जो ट्रेंड यूरोप में दिख रहा है, वह काफी हद तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भी है. अमेरिका के प्रोफेशनल एवं बिजनेस सर्विसेज तथा फाइनेंशियल एक्टिविटीज में कामगारों की करीब 40 फीसदी तंगी है.
पश्चिमी देश नौकरियों में जिस तरह से कामगारों की तंगी का सामना कर रहे हैं और पश्चिमी देशों में एशिया से होने वाले माइग्रेशन के लिए विरोधी व्यवहार है, उससे यह अपरिहार्य हो जाता है कि वहां की नौकरियों की भारत से आउटसोर्सिंग की जाए…
विविधता वाले कार्यों में सेवाएं
आज भारत के GCCs एचआर, पेरोल, मार्केटिंग, मैन्युफैक्चरिंग जैसे कार्यों को संभाल सकते हैं. हमने पूरे भारत का दौरा किया और रियल एस्टेट डेवलपर्स से लेकर बैंकर्स, रिक्रूटर्स सबसे बात की, तो हमें पता चला कि भारत में GCC की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है. उदाहरण के लिए हमने पिछले 12 महीने में 85 GCCs को बनते देखा है (स्रोत: नैस्कॉम रिपोर्ट). ऐसा लगता है कि भारत में हर पांचवें दिन एक नया GCC स्थापित हो रहा है.
निवेश पर क्या होगा असर?
टियर 1 शहरों में जिस तरह से लंबी दूरी के ट्रैवल, रहन-सहन की ऊंची लागत जैसी इन्फ्रा और लाइफ स्टाइल की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और टियर 2 शहरों में सड़कों और एयरलाइन कनेक्टिविटी में सुधार हुआ है, यह स्वाभाविक है कि हम अब इंदौर, नासिक, तिरुनेलवेली, कोयम्बटूर जैसे शहरों में GCCs स्थापित होते देख सकें.
भारत के दक्षिणी राज्यों में ज्यादा संख्या में GCCs स्थापित होने का मतलब यह है कि विदेशी निवेशक उन इलाकों में अपने केंद्र खोलने को प्राथमिकता दे रहे हैं, जहां कानून-व्यवस्था सही है, कुशल प्रतिभाओं की भारी उपलब्धता है और भौतिक बुनियादी ढांचा तुलनात्मक रूप से ज्यादा बेहतर हालत में है. जैसा कि हमने अपने अगस्त 2023 के ब्लॉग में समझाया था कि दक्षिण भारत के लोगों की अंग्रेजी बेहतर होने की वजह से इस इलाके को सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा.
अब ऐसे ज्यादा GCCs टियर 2 शहरों में स्थापित हो रहे हैं और इनसे ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसरों का सृजन होगा. नैस्कॉम के अनुमानों को मानें तो भारत में GCCs में 20 लाख से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं. तो अगर GCCs इसी दर से बढ़त रहे (हर साल 100 नए GCCs) तो अगले पांच साल में यह संभव है कि करीब 6 लाख और भारतीयों को GCCs में रोजगार मिल जाएगा.
अगर यह मान लें कि ऐसी हर नौकरी में औसतन 7 लाख रुपये महीने का वेतन दिया जाता है और अगले पांच साल में भी GCCs में ऐसी ही तेजी बरकरार रहेगी, तो इस तरह के रोजगार से अगले पांच साल में भारतीय अर्थव्यवस्था में सालाना 9 अरब डॉलर की अतिरिक्त आमद होगी. अगर हम इस हम इस पर 2.3x standard Keynesian fiscal multiplier लागू करें (क्योंकि कर्मचारी अगर कमाएंगे तो उपभोग और विलास पर खर्च भी करेंगे) तो इससे यह अंदाजा मिलता है कि अगले पांच साल में भारतीय इकोनॉमी को हर साल 20 अरब डॉलर का फायदा होगा, जो कि जीडीपी का करीब 0.4 फीसद बैठता है. आर्थिक गतिविधियों में इस बढ़त का हमारे ग्राहकों को भी फायदा मिलेगा, उन कंपनियों के उत्पादों और सेवाओं में निवेश के जरिए जिनकी खरीद GCC कामगार कर सकते हैं.
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