बड़ी संख्या में गरीब लोगों वाले देश में वेलफेयर इकोनॉमिक्स का अनुसरण करने वाली किसी भी सरकार को सार्वभौमिक बुनियादी आय पर जरूर विचार करना चाहिए. भले ही संसाधनों की कमी इस नीति के लिए एक बाधा हो, फिर भी एक प्रभावी वृद्धावस्था पेंशन योजना होनी ही चाहिए. ठीक इसी जरूरत की ओर इशारा करते हुए प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने हाल ही में मौजूदा कार्यक्रम को मजबूत करने की सिफारिश की है. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के लाभार्थियों को वर्तमान में 300 रुपये (60-79 वर्ष) और 500 रुपये (80 वर्ष और उससे अधिक) का भुगतान किया जा रहा है. परिषद ने सरकार से इस मासिक राशि को 1,500 और 2,500 रुपये तक बढ़ाने का आग्रह किया है.
यह सिफारिश उचित है और इसे बिना किसी देरी के लागू किया जाना चाहिए. वरिष्ठ नागरिकों, विशेष रूप से बीपीएल श्रेणी के अंतर्गत आने वालों को एक कठिन जीवन का सामना करना पड़ता है. कई परिवारों में उनकी देखभाल नहीं हो पाती, जिससे उन्हें बुनियादी चीजों के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है. कोरोना महामारी के चलते वित्तीय पिरामिड के निचले हिस्से में रहने वाले लाखों परिवारों की आय प्रभावित हुई है, जिससे मुश्किलें कई गुना बढ़ गई हैं. अगर सरकार को कल्याणकारी कदम उठाने हैं, तो शायद समाज के गरीब बुजुर्गों को इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है.
लगभग 14 करोड़ भारतीय 60 की उम्र पार कर चुके हैं. जाहिर है कि सभी को पेंशन की जरूरत नहीं है. राज्य को पेंशन देने के लिए वित्तीय समावेशन प्रक्रिया का लाभ उठाना होगा. यदि आवश्यक हो, तो बैंकिंग संवाददाताओं को घरों का दौरा करना चाहिए और प्राथमिकता के आधार पर जन-धन खाते खोलने चाहिए.
भले ही अर्थव्यवस्था कोविड-19 की दूसरी लहर के प्रभाव से उबर रही हो, राजस्व में स्थायी उछाल दिख रहा है. यदि लीकेज में कमी के साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर प्रशासन में सुधार जारी है, तो सरकार को अपने सलाहकारों की इस मूल्यवान सिफारिश की अनदेखी करने के लिए राजस्व की कमी नहीं होनी चाहिए. एक कल्याणकारी तंत्र जो जमीनी हकीकत से जुड़ा नहीं है, कोई कल्याण नहीं करता है.