गैर-लाभकारी संगठन वूमेंस वर्ल्ड बैंकिंग और बैंक ऑफ बड़ौदा की हाल ही में आई एक स्टडी से एक बचतकर्ता के रूप में महिलाओं की ताकत का पता चलता है. रिपोर्ट में यह कहा गया है कि 10 करोड़ कम आय वाली महिलाओं से देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक जमा के रूप में 25,000 करोड़ रुपये आकर्षित कर सकते हैं और 40 करोड़ कम आय वाले भारतीयों को सशक्त बना सकते हैं. इस स्टडी में महिलाओं की बचत की आदतों पर सर्वे करने से उनकी इस क्षमता का पता चला है. स्टडी में कहा गया कि इस शक्ति का दोहन करने के लिए नए वित्तीय उत्पाद लेकर आने की आवश्यकता है.
दिलचस्प बात यह है कि रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि महिलाएं वफादारी जैसे मामलों में भी बेहतर होती हैं. वे पुरुषों की तुलना में अधिक सक्रिय बचतकर्ता हैं और कर्ज चुकाने में उनका रिकॉर्ड बेहतर है. ये गुण नारी के स्वभाव से उत्पन्न होते हैं. लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि श्रम शक्ति भागीदारी दर में महिलाओं की भूमिका नहीं बढ़ रही है. ईपीएफओ के आंकड़े बताते हैं कि महामारी के दौरान पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं औपचारिक रोजगार क्षेत्र से बाहर निकली हैं. अधिक से अधिक राज्यों में साक्षरता दर और महिलाओं के लिए कल्याणकारी परियोजनाएं लाने के साथ ही देश के कार्यबल में महिलाओं का उपयोग तेजी से बढ़ना चाहिए था.
साल 2017 में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि भारत में लंबे समय तक दोहरे अंकों की जीडीपी विकास दर तभी संभव है, जब देश में महिलाओं की भागीदारी बढ़े. विश्व बैंक ने कहा कि कार्यबल में महिलाओं की अधिक भागीदारी से घरेलू आय बढ़ाने, गरीबी कम करने और घर पर ऐसी स्थिति पैदा करने में मदद मिलेगी, जिसमें घर पर बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा की जरूरतों पर अधिक खर्च होगा.
आंकड़ों के मुताबिक, 2011-12 और 2015-16 के बीच देश में स्नातक की डिग्री लेने वाली आधी महिलाएं थीं. 2018-19 में यह बढ़कर 53% हो गया. हालांकि, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार, 2018-19 में शहरी क्षेत्रों में 15 साल या उससे अधिक उम्र की 18.4% महिलाओं को ही रोजगार प्राप्त था.
केंद्र सरकार ने महिलाओं को सूक्ष्म उद्यमियों के रूप में प्रोत्साहित करने के लिए कौशल कार्यक्रम और रियायती ऋण योजनाओं जैसे कुछ कदम उठाए हैं. लेकिन स्पष्ट रूप से यह आवश्यकता से बहुत कम है. जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे महामारी के प्रकोप से उबर रही है, सरकार को ऐसे कदम उठाने चाहिएं, जो कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ा सकें.