मीराबाई चानू प्रोफाइलः गरीबी जिसके सपने को पूरा होने से नहीं रोक सकी, पढ़िए पूरी कहानी

मीराबाई चानू प्रोफाइलः शुरुआत में मीराबाई वेटलिफ्टर नहीं, बल्कि तीरंदाज बनना चाहती थी.

Tokyo Olympics, Mirabai chanu, Silver medal

मीराबाई का सिल्वर बदल सकता है गोल्ड में

मीराबाई का सिल्वर बदल सकता है गोल्ड में

Tokyo Olympics, Mirabai chanu, Silver medal: भारत के लिए आज बड़ा दिन है. देश ने टोक्यो ओलंपिक में शानदार शुरुआत की है. भारत ने सिल्वर मेडल के साथ इस ओलंपिक में पदक लाने की शुरुआत कर दी है. देश के लिए यह सिल्वर मेडल लेकर आई है, 26 साल की मणिपुर की मीराबाई चानू. चानू ने 49 किलोग्राम की महिला कैटेगरी में यह सिल्वर मेडल (Silver Medal) जीता है. इसके साथ ही ओलिंपिक खेलों की वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिता में मेडल का भारत का 21 साल का इंतजार खत्म हो गया है. आइए मीराबाई की लाइफ के कुछ अनसुने किस्से जानते हैं.

छोटी उम्र में उठा लेती थीं भारी वजन

मणिपुर के इंफाल में नोंगपोक काकचिंग नाम की जगह पर 8 अगस्त 1994 को मीराबाई का जन्म हुआ था. उनका जन्म मैतेई हिंदू परिवार में हुआ था. वे बचपन से ही बड़ी बहादुर हैं. 12 साल की उम्र में वे लकड़ी का इतनी बड़ी मात्रा में लकड़िया उठाकर घर ले आती थीं, जिन्हें उठाने में उनका बड़ा भाई भी विफल रह जाता था.

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यहां से मिली वेटलिफ्टर बनने की प्रेरणा

मीराबाई चानू ने बचपन में ही निर्णय कर लिया था कि वे आगे चलकर एक खिलाड़ी के तौर पर ख्याति प्राप्त करेंगी. चानू एक गरीब परिवार से आती हैं. साल 2008 की शुरुआत में वे इंफाल के स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) के केंद्र पहुंचीं. वहां उन्हें कोई आर्चर नहीं मिला. लेकिन, वहां उन्होंने मणिपुर की वेटलिफ्टर कुंजारानी देवी की क्लिपिंग दिखीं. यहीं से उन्हें वेटलिफ्टर बनने की प्रेरणा मिली.

पहले तीरंदाज बनना चाहती थी मीराबाई

बता दें कि शुरुआत में मीराबाई वेटलिफ्टर नहीं, बल्कि तीरंदाज बनना चाहती थी. एक इंटरव्यू में मीराबाई ने कहा था, “मेरे सभी भाई फुटबॉल खेलते थे और शाम को धूल से सने हुए लौटते थे. मैं ऐसा खेल चाहती थी जो कि साफ-सुथरा हो. शुरुआत में मैं तीरंदाज बनना चाहती थी, क्योंकि ये भी स्टाइलिश और साफ खेल था.”

रोज 22 किलोमीटर का सफर तय किया

मीराबाई का शुरुआती जीवन संघर्ष भरा रहा. वे सुबह उठकर 22 किलोमीटर का रास्ता तय प्रैक्टिस के लिए जाती थीं. इसके बाद वे घर आकर स्कूल के लिए तैयार होतीं. उनका गांव इंफाल से 22 किलोमीटर दूर पड़ता था. यह दूरी उन्हें हर रोज तय करनी पड़ती थी. प्रैक्टिस और स्कूल में देरी ना हो, इसके लिए मीराबाई की मां उन्हें सुबह चार बजे उठा देती थीं.

रियो ओलंपिक रहा था निराशाजनक

हालांकि, चानू के लिए 2016 का रियो ओलिंपिक निराशाजनक रहा था. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने खेल में लगातार सुधार किया. रियो ओलंपिक के बाद चानू ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया. उन्होंने प्रत्येक बड़ी स्पर्धा में मेडल जीते. मीराबाई ने इस साल अप्रैल में 86 किलो स्नैच और 119 किलो वजन उठाकर खिताब जीता था. उन्होंने कुल 205 किलो वजन उठाकर ब्रॉन्ज मेडल जीता था.

Published - July 24, 2021, 01:48 IST