फ्री वैक्सीन का लालच छोड़ कोरोना का प्रभाव घटा सकता है मिडल क्लास

Paid Vaccine: रिपोर्ट्स के मुताबिक, देश की राजधानी दिल्ली में पेड शॉट्स की संख्या जुलाई में प्रतिदिन 4,856 थी, जो सितंबर में घटकर 2,212 पर आ गई है

financial inclusion is having a deep social impact

जनधन के लाभार्थियों को जो डेबिट कार्ड दिए गए हैं, उनकी मदद से वे कैशलेस ट्रांजैक्शन कर सकते हैं. हालांकि, केवल 72.37% को ये कार्ड मिले हैं

जनधन के लाभार्थियों को जो डेबिट कार्ड दिए गए हैं, उनकी मदद से वे कैशलेस ट्रांजैक्शन कर सकते हैं. हालांकि, केवल 72.37% को ये कार्ड मिले हैं

‘मुफ्त’ शब्द में एक जादू सा होता है. जब भी कहीं कुछ भी फ्री में मिल रहा होता है, बिक्री में तेज उछाल देखने को मिलती है और जल्द स्टॉक खत्म हो जाता है. मुफ्त का चस्का ऐसा है कि जो लोग पैसे देकर वैक्सीन लगवा सकते हैं, वे भी सरकारी सेंटरों की लंबी कतारों में लगे हुए हैं. यह जानते हुए कि कोरोना का प्रकोप घटाने में जब तक सब सहयोग नहीं करेंगे, तब तक जान का खतरा हर किसी पर मंडराता रहेगा. सुनसान पड़े प्राइवेट अस्पतालों के वैक्सीनेशन सेंटर इस बात की गवाही दे रहे हैं कि मुफ्त टीकाकरण के लिए लोगों को लंबा इंतजार मंजूर है.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, देश की राजधानी दिल्ली में पेड शॉट्स की संख्या जुलाई में प्रतिदिन 4,856 थी, जो सितंबर में घटकर 2,212 पर आ गई है. शहरों में ऐसे उदाहरण तक देखने को मिल रहे हैं, जहां फ्री वैक्सीन का इंतजार कर रहे मिडल क्लास को मल्टीप्लेक्स में जाकर फिल्मों की टिकट पर पैसे उड़ाने से कोई ऐतराज नहीं.

इससे लोगों की खर्च करने की प्राथमिकताओं को लेकर सवाल उठते ही हैं. साथ में बिना वैक्सीन लगवाए लोगों के बीच कोरोना फैलने का खतरा भी बढ़ता है. कोविड की संभावित तीसरी लहर को लेकर एक्सपर्ट्स पहले से चेतावनी देते आ रहे हैं.

जो लोग पैसे देकर वैक्सीन लगवा सकते हैं, उन्हें बिना देर किए ऐसा कर लेना चाहिए. इससे वे सरकारी केंद्रों पर मिल रहे मुफ्त टीके जरूरतमंदों के लिए छोड़ेंगे. खुद को और अपने आसपास वालों को जानलेवा वायरस से बचा भी सकेंगे. टीकाकरण का उद्देश्य इंफेक्शन का प्रभाव घटाना है.

कई मिडल क्लास नागरिक ऐसे भी हैं जिन्होंने न सिर्फ खुद का, बल्कि घरों में काम करने वाले नौकरों, ड्राइवरों तक का टीकाकरण अपने पैसों से करवाया है. ऐसे लोगों से सबको सीख लेनी चाहिए. जब बात जिंदगी और मौत की हो, तो चंद पैसे बचाने का कोई तुक नहीं बनता. आखिरकार, एक डोज की कीमत मूवी टिकट और पॉपकर्न पर खर्च किए जाने वाले पैसों से कम ही है.

Published - September 21, 2021, 06:14 IST