अब रविवार को बंद रहा करेगा भगवान जगन्नाथ का मंदिर

Lord Jagannath: कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में वृद्धि के मद्देनजर श्री जगन्नाथ मंदिर को प्रत्येक रविवार को बंद रखने का निर्णय लिया गया.

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ओडिशा में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में वृद्धि के मद्देनजर श्री जगन्नाथ मंदिर (Lord Jagannath) प्रशासन (एसजेटीए) ने मंदिर को संक्रमण मुक्त करने के लिए अगले सप्ताह से प्रत्येक रविवार को मंदिर बंद रखने का निर्णय रविवार को लिया. एसजेटीए के अध्यक्ष कृष्ण कुमार ने कहा कि ‘छत्तीशा निजोग’ (मंदिर के सेवादारों की संस्था) के बातचीत के बाद यह निर्णय लिया गया कि प्रत्येक रविवार को श्रद्धालुओं के लिए मंदिर (Lord Jagannath) बंद रखा जाएगा. कुमार ने कहा कि मंदिर में दैनिक पूजा अर्चना जारी रहेगी.

उन्होंने कहा कि कि इससे पहले पिछले साल दिसंबर में मंदिर (Lord Jagannath) के दोबारा खुलने के बाद भी इस प्रकार के प्रतिबंध लगाए गए थे. इस बीच सूत्रों ने बताया कि एसजेटीए ने सेवादारों और उनके परिवार के सदस्यों के टीकाकरण के लिए व्यवस्था की है क्योंकि वे देशभर से आने वाले श्रद्धालुओं के संपर्क में रहते हैं.

इस बीच मंदिर के पश्चिमी भाग में रखी भगवान नृसिंह की एक विशाल प्रतिमा की रविवार को सफाई करते समय पत्थर की बनी “हिरण्यकश्यप” की मूर्ति एक सेवादार के पैर पर गिर गई जिससे वह घायल हो गया. कुमार ने कहा, “एसजेटीए ने घायल सेवादार का भुवनेश्वर के एक अस्पताल में उपचार कराने की व्यवस्था की है.”

श्री जगन्नाथ मंदिर एक हिन्दू मंदिर है, जो भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है. यह भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है. जगन्नाथ शब्द का अर्थ जगत के स्वामी होता है. इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है. इस मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है. यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है. इस मंदिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव प्रसिद्ध है. इसमें मंदिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं. श्री जगन्नथपुरी पहले नील माघव के नाम से पुजे जाते थे. जो भील सरदार विश्वासु के आराध्य देव थे. अब से लगभग हजारों वर्ष पुर्व भील सरदार विष्वासु नील पर्वत की गुफा के अंदर नील माघव जी की पुजा किया करते थे. मध्य-काल से ही यह उत्सव अतीव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.

Published - March 28, 2021, 09:27 IST