महामारी की दूसरी लहर के प्रकोप के बाद अर्थव्यवस्था अपने सामान्य विकास पथ पर लौटने के लिए संघर्ष कर रही है और लाखों बेरोजगार नौकरियों की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं. अर्थव्यवस्था का पहले जैसी सामान्य स्थिति में वापस आना काफी हद तक मांग में वृद्धि पर निर्भर करता है. आगामी फेस्टिव सीजन के दौरान मांग में अच्छी तेजी देखने को मिल सकती है. इस सीजन में कंज्यूमर ड्यूरेबल्स से लेकर अपैरल, पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स से लेकर हाउस केयर आइटम, ट्रैवल पैकेज से लेकर हॉस्पिटैलिटी, ऑटोमोबाइल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक गुड्स तक के उत्पादों में मांग काफी बढ़ जाती है.
मांग को बढ़ावा देने के लिए वित्त मंत्री ने बैंकों को खुदरा उधारकर्ताओं और छोटे व्यवसायों को ऋण उपलब्ध कराने के लिए कहा है. आसान ऋण निश्चित रूप से खुदरा मांग को बढ़ाता है और मध्यम व लघु उद्योगों को मांग को पूरा करने के लिए लिक्विडिटी की वास्तविक आवश्यकता है. एमएसएमई 50,000 करोड़ रुपये के लिक्विडिटी पूल के प्राथमिक लक्ष्यों में से एक था, जिसे रिजर्व बैंक ने मई में इंडिविजुअल और एमएसएमई दोनों की कठिनाइयों को दूर करने के लिए घोषित किया था.
अगले कुछ महीनों में बाजार में उभरने वाली मांग को पूरा करने के लिए एमएसएमई को न केवल ऋणों के पुनर्गठन की आवश्यकता है, बल्कि ऋणों की भी आवश्यकता है. हालांकि, क्षमता का विस्तार तुरंत नहीं हो सकता है, भले ही 30 दिनों की संवितरण समय-सीमा को सख्ती से बनाए रखा जाए, लेकिन कार्यशील पूंजी की जरूरत वाली कंपनियां निश्चित रूप से ऋण पूंजी के साथ बढ़ी हुई मांग को पूरा कर सकती हैं. हाल के वर्षों में नियमों में ढील के बावजूद, छोटी और मध्यम इकाइयां अभी भी बैंकों से ऋण प्राप्त करने में कठिनाई की शिकायत करती हैं.
हालाँकि, अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ाना एक जटिल मामला है और बहुत कुछ उपभोक्ता भावना पर निर्भर करता है. इस महीने की शुरुआत में एक सर्वे ने संकेत दिया है कि कंज्यूमर सेंटिमेंट बढ़ रहा है, लेकिन वृद्धि में बहुत असमानता है. देश के उत्तरी भाग में परिवारों ने दूसरी लहर के दौरान खर्च में वृद्धि की, जबकि पूर्वी, पश्चिमी और दक्षिणी राज्य इसमें पिछड़ गए. 50% से कम परिवारों ने कहा कि उन्होंने आवश्यक वस्तुओं पर खर्च बढ़ा दिया.
जून में कंज्यूमर सेंटिमेंट पर आरबीआई की एक रिपोर्ट ने दूसरी लहर के दौरान और भी खराब तस्वीर दिखाई. आने वाले समय में तीसरी लहर की गंभीरता और टीकाकरण की दर काफी हद तक उपभोक्ता भावना के भविष्य को निर्धारित करेगी. तब तक, उपभोक्ताओं और उद्योग को साथ लाने के लिए लोन मेला कारगर हो सकता है.