निकिता की सालाना आय 4.5 लाख रुपए है. उन्हें आयकर रिटर्न यानी आईटीआर भरना चाहिए या नहीं. इस बात को लेकर वह उलझन में हैं. यह सिर्फ निकिता की ही दुविधा नहीं है. बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो आईटीआई भरने को लेकर दुविधा में रहते हैं. नियमों के तहत जिन करदाताओं की कुल सकल आय करदेय सीमा के पार हो जाती है उनके आईटीआर फाइल करना अनिवार्य है.
वर्तमान में यह सीमा 2.5 लाख रुपए है. हालांकि विशेष प्रावधान के तहत सालाना पांच लाख रुपए तक की आय पर कोई टैक्स नहीं बनता. ऐसे में निकिता की तरह अधिकांश लोग मानते हैं कि जब टैक्स ही नहीं बन रहा तो फिर आईटीआर क्यों भरें? अगर आप भी ऐसा ही सोच रहे हैं तो गलत है. अगर आपने अभी करियर की शुरुआत की है या भविष्य में होम, कार या एजुकेशन लोन लेना है तो आपको आईटीआई भरना चाहिए. भले ही आपकी सालाना आय कर के दायरे में नहीं आती हो. इस कदम से आपको कोई नुकसान नहीं होगा जबकि कई फायदे हो सकते हैं. आइए हम बताते हैं.
सालाना आय का प्रूफ
जो लोग आईटीआर भरते हैं. इसके एवज में उन्हें आयकर विभाग की ओर से एक प्रमाण पत्र मिलता है जो इस बात की आधिकारिक पुष्टि करता है कि आपकी सालाना आमदनी कितनी है. कोई पेशेवर या कारोबारी व्यक्ति हर साल भले ही लाखों रुपए कमाता हो लेकिन उनकी अधिकृत आय तभी मानी जाएगी जब वो रिटर्न दाखिल करेंगे.
कर्ज लेने में आसानी
आजकल अधिकांश लोग घर, कार, बाइक या एसी-फ्रिज जैसे घरेलू सामान बैंक या अन्य वित्तीय संस्थानों से कर्ज लेकर खरीदते हैं. कोई भी संस्थान कर्ज उसी व्यक्ति को देता है जिससे वापसी सुनिश्चित होती है. जाहिर है जिस व्यक्ति की कमाई होगी उसे ही कर्ज मिलता है. आईटीआर आपकी सालाना आय का एक सरकारी दस्तावेज होता है जिसे सभी सरकारी और निजी वित्तीय संस्थान आय के प्रूफ के रूप में स्वीकार करते हैं. अगर आप नियमित रूप से आईटीआर फाइल कर रहे हैं तो आपको सालाना आय के आधार पर आसानी से कर्ज मिल जाएगा.
बीमा कवर व क्लेम
कोरोना महामारी ने अहसास करा दिया है कि जीवन का कुछ पता नहीं है कि किसके साथ कब क्या हो जाए. इसी वजह से लोग टर्म इंश्योरेंस के जरिए बीमा कवर बढ़ा रहे हैं ताकि उनके न रहने पर आश्रितों को किसी के आगे आर्थिक मदद के लिए हाथ न फैलाना पड़े. अगर आप बड़ी राशि का टर्म बीमा प्लान लेना चाहते हैं तो कंपनियां आपकी आय का ब्योरा मांगती हैं. इसके लिए आईटीआर सबसे मजबूत सबूत है. इसी तरह अगर किसी व्यक्ति की दुर्घटना में मौत हो जाती है और परिवार की भरपाई के लिए मामला कोर्ट में जाता है… ऐसे में मृतक व्यक्ति की पिछले तीन साल की आईटीआर के आधार पर सालाना औसत आय निकाली जाती है. इसी आधार पर परिवार को 10 गुना तक राशि देने का प्रावधान है. अगर व्यक्ति की सालाना आय 10 लाख रुपए है तो दुर्घटना में मौत की स्थिति में परिवार के भरण-पोषण के लिए कोर्ट के जरिए एक करोड़ रुपए तक की आर्थिक सहायता मिल सकती है. आईटीआर के अभाव में यह मामला एक-दो लाख रुपए में ही निपट जाता है.
टीडीएस का क्लेम
जिन लोगों का कहीं टीडीएस कटा है तो वह रिटर्न भरकर इस रकम को आसानी से वापस कर सकते हैं. जो लोग कांट्रैक्ट या पेशेवर सेवाएं देते हैं उनकी मासिक आय पर 10 फीसद स्रोत पर कर कटौती यानी टीडीएस काटा जाता है. इसी तरह कमीशन के आधार पर काम करने वाले लोगों को भी टीडीएस काट कर भुगतान किया जाता है. इनमें से अधिकांश लोग ऐसे होते हैं जिनकी सालाना आय 2.5 लाख रुपए से कम है. ऐसे लोग रिटर्न भरकर अपनी रकम को वापस ले सकते हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
पर्सनल फाइनेंस एक्सपर्ट जितेन्द्र सोलंकी कहते हैं कि बेरोजगारी के दौर में सरकारी तो क्या प्राइवेट नौकरी मिल पाना संभव नहीं है. ऐसे में अब बड़ी संख्या में लोग अपना उद्यम शुरू करने की ओर रुख कर रहे हैं. इसके लिए आईटीआर भरना जरूरी है. अगर आप किसी सरकारी विभाग से ठेका लेना चाहते हैं तो इसके लिए आईटीआर मांगा जाता है. अगर आप विदेश जाने की सोच रहे हैं तो वीजा के लिए भी आईटीआर मांगा जा सकता है. अगर आप पैसों का कोई बड़ा लेनदेन करते हैं तो आपके लिए आईटीआर मददगार साबित हो सकता है. प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त अथवा कोई बड़ा निवेश करने पर आयकर विभाग का नोटिस आ सकता है. आईटीआर भरते हैं तो फिर आपको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.ऐसे में भले ही आप आयकर के दायरे में नहीं आ रहे और आईटीआर भर रहे हैं तो इसका भविष्य में फायदा मिल सकता है.