उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई में गिरावट दर्ज हई है. सितंबर महीने में यह महंगाई दर 4.35% रही है, जो अगस्त में 5.30% थी. सितंबर का यह आंकड़ा पांच महीने का निचला स्तर है. एक साल पहले की समान अवधि में यह महंगाई 7.3% थी, जो काफी अधिक है. सितंबर, 2021 में दर्ज हुई सीपीआई आधारित महंगाई दर विशेषज्ञों के सभी अनुमानों से कम रही है.
महंगाई में यह कमी खाद्य पदार्थों की कीमतों में गिरावट के चलते आई है. इसका उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में लगभग 47% वेटेज होता है. वर्तमान में सबसे बड़ी चुनौती ईंधन की कीमतों को लेकर है. ईंधन की कीमतों में लगातार बढ़ोत्तरी से आम आदमी की जेब पर काफी बोझ पड़ रहा है.
सौर ऊर्जा के अपवाद के अलावा लगभग सभी प्रकार के ईंधन की कीमतें या तो बढ़ रही हैं या किसी भी क्षण बढ़ सकती हैं. पेट्रोल, डीजल, एलपीजी, सीएनजी और कोयले की कीमतें ऊपर की ओर बढ़ रही हैं. देश के बिजली संयंत्रों में कोयले की कमी है और आयात का मतलब उत्पादन लागत में तेजी से वृद्धि होगी, क्योंकि दुनिया भर में प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की अचानक मांग के कारण कोयले की कीमतें बढ़ रही हैं.
कीमतों में जल्द ही गिरावट आने के कोई आसार भी नहीं हैं. पेट्रोल और डीजल की कीमतें ऐतिहासिक ऊंचाई पर हैं. न तो केंद्र और न ही राज्य सरकारें पेट्रोल-डीजल पर वसूले जाने वाले भारी करों पर समझौता करने को तैयार हैं. एलपीजी की कीमतें भी उपभोक्ताओं पर डाली जा रही हैं, क्योंकि केंद्र सभी उपयोगकर्ताओं के लिए सिलेंडर में सब्सिडी को हटा रहा है.
आवश्यक रसोई ईंधन की कीमतों में पिछले एक साल में आश्चर्यजनक रूप से 50% की वृद्धि हुई है. सीएनजी, जिसे कारखानों से लेकर रसोई तक कई तरह के अनुप्रयोगों के लिए एक स्वच्छ ईंधन के रूप में जाना जाता है, उसकी कीमत को सितंबर के अंत में 62% तक बढ़ा दिया गया था.
ऊर्जा की कीमतों का बढ़ता ग्राफ आम आदमी के लिए पर्याप्त चिंता का विषय है. रोजगार परिदृश्य पर महामारी के कहर के साथ, ऊर्जा की कीमतें आम आदमी की व्यक्तिगत वित्त गणना को झटका दे सकती हैं.