आगरा के अमर सिंह करोड़ों की प्रॉपर्टी के मालिक हैं. खेती और बिजनेस से हर महीने लाखों की कमाई है लेकिन 6 साल के दिव्यांग बेटे को लेकर परेशान हैं. उनके बाद बेटे की देखभाल कौन करेगा. करोड़ों की संपत्ति का प्रबंधन और बंटवारा कैसे होगा. उन्हें यही चिंता सताए जा रही है. वो समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या करें? दरअसल, जिन परिवारों में दिव्यांग बच्चे हैं. उनकी एस्टेट प्लानिंग की विशेष जरूरत होती है. एस्टेट प्लानिंग यानी भविष्य की आर्थिक सुरक्षा के लिए निवेश, संपत्ति का प्रबंधन और बंटवारा.
सामान्य बच्चों की तुलना में दिव्यांग बच्चों की देखरेख और पढ़ाई-लिखाई के लिए ज्यादा पैसों की जरूरत होती है. इनके लिए विरासत में ज्यादा संपत्ति छोड़ रहे हैं तो चिंताएं और ज्यादा बढ़ जाती हैं. ऐसे बच्चों के जीवनभर का खर्च, गार्जियन की नियुक्ति, सदस्यों के बीच संपत्ति का बंटवारा और परिवार के अन्य सदस्यों की जरूरतें जैसी चिंताएं माता-पिता को चैन से नहीं जीने देतीं.
वर्ष 2019 में 19 साल से कम उम्र के करीब 78 लाख बच्चे दिव्यांग
देश में साल 2011 की जनगणना के अनुसार 2.68 करोड़ लोग दिव्यांग हैं. यूनेस्को और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइसेंज की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2019 में भारत में 19 साल से कम उम्र के करीब 78 लाख बच्चे दिव्यांग थे. ऐसे बच्चों के लिए एस्टेट प्लानिंग पर ध्यान देना बहुत जरूरी है, क्योंकि उत्तराधिकारी को पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा करने के लिए कई बार कानूनी प्रक्रिया में शामिल होना पड़ता है. परिवार में बंटवारे को लेकर कई बार विवाद इतना बढ़ जाता है कि कोर्ट में सालों-साल केस चलता है. अगर बच्चा दिव्यांग है तो उसके लिए इस तरह की चुनौतियों से निपटना मुश्किल हो जाता है.
पैतृक संपत्ति में ऐसे बच्चों के लिए अलग से कोई विशेष अधिकार नहीं है. उसके साथ कोई भी कानूनी बाधा उसके भविष्य को खतरे में डाल सकती है. एस्टेट प्लानिंग के जरिए आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि बच्चे की देखभाल जीवन भर होती रहेगी. अब सवाल ये है कि इसके लिए क्या करें. माता-पिता को कानूनन रूप से 18 साल तक की आयु तक ही बच्चों का गार्जियन यानी संरक्षक माना जाता है. बालिग होने पर बच्चा अपने फैसले खुद ले सकता है. हालांकि विशेष जरूरत वाले बच्चों को जीवनभर के लिए सहयोग चाहिए, इसलिए माता-पिता को 18 साल के बाद भी कानूनी अभिभावक बनना पड़ता है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि माता-पिता के बाद बच्चे की देखभाल और संपत्ति का प्रबंधन कौन करेगा? इसकी व्यवस्था पहले ही करनी होगी.
विशेष बच्चों की देखभाल के लिए ज्यादा रकम की जरूरत होगी. इस दौरान परिवार के अन्य सदस्यों की जरूरतें भी नजरअंदाज नहीं की जा सकतीं. ऐसे में संपत्ति के बंटवारे, बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी जैसी चिंताओं को किसी योग्य वकील से वसीयत लिखवा कर दूर किया जा सकता है. फैसले लेने में सक्षम न होने की वजह से माता-पिता संपत्ति और नकदी को सीधे विशेष जरूरत वाले बच्चे को नहीं देना चाहेंगे. इस संपत्ति के प्रबंधन के लिए उन्हें एक अच्छा गार्जियन तलाशना होगा. एक निजी ट्रस्ट बनाकर इस चिंता को काफी हद तक दूर कर सकते हैं. इसका प्रबंधन और आय वितरण कैसे होगा. यह कुछ ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें माता-पिता ट्रस्ट डीड बनाकर उसमें शामिल कर सकते हैं.
पर्सनल फाइनेंस एक्सपर्ट जितेन्द्र सोलंकी कहते हैं कि विशेष जरूरत वाले बच्चों के लिए आवास, उपचार, शिक्षा और रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए अच्छी-खासी रकम की जरूरत होगी. इनमें से अधिकांश खर्च उसकी हर अवस्था में पूरे करने होंगे. इसलिए बच्चे के लिए एस्टेट प्लानिंग करते समय सबसे पहले यह अनुमान लगाएं कि उसके जीवनभर के खर्चों के लिए कितने पैसे काफी रहेंगे. इनकी पूर्ति के लिए बच्चे के लिए जल्द से जल्द प्लानिंग शुरू कर दें ताकि आपके बाद आपके लाडले को पैसे की कमी ने पड़े.