बैंकों से कर्ज की मांग पिछले कुछ दिनों से लगातार बढ़ रही है. मानो कर्ज लेने की होड़ मची हो और वह भी ऐसे समय समय जब कर्ज लगातार महंगे हो रहे हैं. मई से अब तक रिजर्व बैंक पॉलिसी दरों में 140 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी कर चुका है और RBI की बढ़ोतरी के बाद सभी बैंकों ने हर तरह का कर्ज महंगा कर दिया है. घर, गाड़ी और एजुकेशन सहित सभी पर्सनल लोन महंगे हो गए हैं. इनके अलावा इंडस्ट्री और सरकार के लिए भी कर्ज महंगा हुआ है. लेकिन महंगे कर्ज के बावजूद लंबे समय से क्रेडिट ग्रोथ दहाई के आंकड़े में बनी हुई है और 9 सितंबर तक पिछले 3 पखवाड़ों में क्रेडिट ग्रोथ 15 फीसद के ऊपर दर्ज की गई है. 9 सितंबर को खत्म पखवाड़े में तो ग्रोथ 16 फीसद से भी ऊपर थी.
कर्ज की बढ़ी मांग के लिए पिछले साल के बेस इफेक्ट को भी वजह माना जा रहा है. पिछले साल कोरोना की वजह से कर्ज के लिए ज्यादा मांग देखने को नहीं मिली थी लेकिन इस साल कोरोना का असर खत्म हो गया है और अर्थव्यवस्था रिकवर कर रही है. इसी रिकवरी के साथ कर्ज के लिए मांग भी बढ़ रही है और उन्हीं सेक्टर के लिए ज्यादा मांग है जो कोरोना की वजह से ज्यादा प्रभावित हुए थे. जुलाई अंत तक सर्विस सेक्टर के लिए कर्ज की मांग 16 फीसद से ज्यादा बढ़ी है. साथ में पर्सनल लोन्स के लिए भी मांग में 18 फीसद से ज्यादा का उछाल आया है. इंडस्ट्री की बात करें तो छोटे और मझोले उद्योग ही कर्ज उठा रहे हैं. बड़े उद्योगों के लिए ग्रोथ ज्यादा नहीं है और उन बड़े उद्योगों में भी कई सेक्टर ऐसे हैं जहां पर कर्ज की ग्रोथ बढ़ने के बजाय घटी है.
जुलाई अंत तक पोर्ट्स से डील करने वाले उद्योग में कर्ज की मांग करीब 30 फीसद कम रही है. पेट्रो कैमिकल उद्योग में 12 फीसद से ज्यादा, रेलवे में 10 फीसद से ज्यादा और कंस्ट्रक्शन उद्योग में कर्ज की मांग 3 फीसद से ज्यादा घटी है. शुगर सेक्टर के लिए भी कर्ज की मांग में कमी आई है. यानी कर्ज की मांग का सुंतलन ठीक नहीं है. मांग कहीं ज्यादा है तो कहीं घट रही है. हालांकि कुल मांग देखें तो पिछले साल से ज्यादा ही है. लोग ज्यादा ब्याज पर भी कर्ज लेने से पीछे नहीं हट रहे और आने वाले त्योहारी सीजन में कर्ज के लिए मांग बढ़ने की संभावना और भी ज्यादा है.
ऐसी परिस्थिति में रिजर्व बैंक के लिए चुनौती बढ़ गई है. लोगों के हाथ से नकदी कम करने के लिए RBI लगातार ब्याज दरें बढ़ा रहा है लेकिन लोग महंगे ब्याज पर भी कर्ज उठा रहे हैं. यही वजह है कि बैंकों के पास अब लिक्विडिटी की कमी होने लगी है और इस हफ्ते की बैठक में रिजर्व बैंक. इन तमाम पहलुओं को ठीक करने के लिए कदम भी उठा सकता है.