कोरोना महामारी ने हमारे बच्चों को काफी नुकसान पहुंचाया है. इस महामारी ने बच्चों से एक ऐसा अवसर छीना है जिसे कभी वापस नहीं लाया जा सकता है. स्कूली जीवन की खुशी और उत्साह बच्चों के जीवन से गायब हो गया है. बच्चों का लगभग दो साल का स्कूली जीवन खत्म हो जाने के बाद, उनके लिए चीजें कभी भी पहले जैसी नहीं होंगी, लेकिन हालात किसी के भी काबू से बाहर थे. हमें अभी तक कोविड -19 का अंत देखना बाकी है और तीसरी लहर का जोखिम भी बना हुआ है. ऐसे में हम बच्चों को इस घातक भंवर में फेंकने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं.
देश में कई राज्य स्कूल खोलना चाह रहे हैं. आंध्र प्रदेश में 16 अगस्त से काफी स्कूल खुल चुके हैं. यह स्थिति तब है जब बच्चों की वैक्सीन आने का समय निश्चित नहीं है. ऐसे में राज्यों को तीसरी लहर से निपटने और इस दौरान बच्चों का वैक्सीनेशन पूरा होने के बाद ही स्कूलों को फिर से खोलना चाहिए.
ऑनलाइन क्लास और स्कूल न खोले जाने के चलते बच्चों में बेचैनी और चंचल व्यवहार के लक्षण देखे जा रहे हैं लेकिन बच्चों को वायरस के खतरे से बचाना भी हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए. कोरोना महामारी ने हम से बहुत कुछ छीन लिया है और अगर बच्चे बड़े पैमाने पर संक्रमित होते हैं तो हमारी चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्था को संभालना आसान नहीं होगा.
इतना ही नहीं हमारे यहां एक और चुनौती स्कूलों का बुनियादी ढांचा भी है. हर स्कूल के पास बड़ी-बड़ी बिल्डिंग नहीं है. ऐसे में कोविड-19 प्रोटोकॉल के तहत दो गज की दूरी का पालन करते हुए बच्चों के बैठने की व्यवस्था करना भी आसान नहीं है. इसके लिए जरूरी पैसा और बुनियादी ढांचा को विस्तार देने की आवश्यकता है.
हालांकि इस समय पेरेंट्स भी अपने बच्चों को स्कूल भेजने में सहज नहीं होंगे और उनकी इस भावना का सम्मान भी किया जाना चाहिए. स्कूलों को इस विषय पर गहराई से सोचने और इसके बारे में ऑप्शन तलाशने की जरूरत है. राज्य सरकारें ऐसे उपायों की घोषणा करना चाहती हैं जो सामान्य स्थिति में लौटने का संकेत देते हैं और समाज के विभिन्न वर्गों के बीच विश्वास को प्रेरित करते हैं. लेकिन कोविड -19 के साथ हम अब तक देखते आए हैं कि सावधानी ही बचाव का सबसे अच्छा तरीका है.