आर्थिक संकट में फंसी कंपनियों के कर्मचारियों को झटका लगा है. दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी अधिनियम 2013 के एक प्रावधान को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी जिसमें कहा गया है कि इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016 के प्रावधानों के अनुसार किसी कंपनी के परिसमापन (Liquidation) से गुजरने की स्थिति में श्रमिकों के बकाया को प्राथमिकता नहीं मिलेगी. कोर्ट ने कंपनी का आईबीसी में परिसमापन हो रहा है तो कंपनी अधिनियम 2013 के अनुच्छेद 327 (7) के एक नोट में धारा 326 और 327 को लागू करने के प्रावधान को खत्म कर दिया गया है.
इस फैसले के जरिए कोर्ट ने पुराने प्रावधान को बरकरार रखा. कंपनी अधिनियम की धारा 326 और 327 के तहत कंपनी बंद होने पर कर्मचारियों के बकाये और केंद्र और राज्य सरकारों या स्थानीय निकाय के राजस्व, करों व उपकरों का भुगतान प्राथमिकता में रखा गया है. हालांकि, 2016 के संशोधन के अनुसार धारा 327 में उप-धारा (7) जोड़ी गई है, जिसमें कहा गया है कि दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 के तहत परिसमापन की स्थिति में धारा 326 और 327 लागू नहीं होंगे. याचिकाओं को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि धारा 327(7) को नई आईबीसी व्यवस्था की शुरुआत के तहत जोड़ा गया था.
धारा 327(7) को मोजर बेयर और जेट एयरवेज कर्मचारी यूनियन द्वारा दायर एक रिट याचिका में चुनौती दी गई थी. इस प्रावधान का हवाला देते हुए तर्क दिया गया था कि परिसमापक ने यूनियन के सदस्यों को वैध बकाया – ग्रेच्युटी, भविष्य निधि, पेंशन, और पृथक्करण मुआवजे से वंचित कर दिया था. बाद में, इस प्रावधान को मनमाना और अनुचित बताते हुए दूसरी याचिकाएं भी दायर की गईं. याचिकाकर्ताओं ने एक कंपनी के परिसमापन के बाद आईबीसी की धारा 53 के अनुसार संपत्ति के वितरण के लिए “वाटरफॉल मैकेनिज्म” से कामगारों के वैधानिक बकाये को बाहर रखने के निर्देश देने की भी मांग की थी. अब सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद इस व्यवस्था से जेट एयरवेज और मोजरबेयर जैसी कंपनियों के कर्मचारी प्रभावित होंगे.