Direct Selling Companies: केंद्र सरकार सीधे ग्राहकों को अपने उत्पाद बेचने वाली एमवे, टपर वेयर, ओरिफ्लेम जैसी डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों पर नकेल कसने जा रही है. इनके कारोबार को नियंत्रित करने के लिए उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने नए दिशा-निर्देश (गाइडलाइंस) का मसौदा जारी कर दिया. इस ड्राफ्ट पर सभी संबंधित पक्षों (स्टेक होल्डर्स) से राय मांगी गई है.
गाइडलाइंस को मंजूरी मिल जाने के बाद कंपनियों को कंपनियों को 90 दिन के अंदर गाइडलाइन का पालन करना होगा. जानकारी के मुताबिक नए नियमों के लागू होने के बाद डायरेक्ट सेलिंग कंपनियां अपने एजेंटों या विक्रेताओं से सामान बेचने और ग्राहकों के समक्ष प्रदर्शन के लिए दिए जाने वाले सामान (सैंपल) के लिए कोई शुल्क यानी अपफ्रंट फीस नहीं ले सकेंगी. कंपनियां इनसे किसी प्रकार की एंट्री या रजिस्ट्रेशन फीस भी नहीं ले सकेंगी.
इसके अलावा नई गाइडलाइंस के तहत देश में कारोबार करने वाली विदेशी डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों के लिए भारत में रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी होगा. साथ ही इन कंपनियों को भारत में अपना दफ्तर भी अनिवार्य रूप से खोलना होगा.
ग्राहक सेवा के मामले में भी सरकार सख्ती बढ़ाने जा रही है. नए नियमों के तहत ग्राहकों की शिकायतों और समस्याओं के समाधान के लिए डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों को चौबीसों घंटे काम करने वाला कस्टमर सर्विस सेंटर चालू करना होगा और 24X7 कस्टमर केयर नंबर भी जारी करना होगा. साथ ही उन्हें अपने उत्पादों में कोई खराबी निकलने पर सामान वापस भी लेना होगा. इसके लिए कंपनियों को बाकायदा अपनी रिफंड पॉलिसी जारी करनी होगी.
मामले से जुड़े सूत्रों का बताना है कि नई गाइडलाइन के जरिये दरअसल सरकार नियमों को सख्त बना कर डायरेक्ट सेलिंग के नाम पर मल्टी लेवल मार्केटिंग किए जाने पर रोक लगाना चाहती है. इस कवायद के पीछे सरकार का मकसद ग्राहकों के प्रति कंपनियों की जवाबदेही बढ़ाना है. साथ ही सरकार इन कंपनियों से जुड़े विक्रेताओं, एजेंटों का हितों की रक्षा भी करना चाहती है.
इससे पहले सरकार ने 2016 में भी डायरेक्ट सेलिंग कंपनियों के लिए गाइडलाइंस जारी की थीं. हालांकि उस समय इन्हें केवल सुझाव के तौर पर पेश किया गया था. इस बार सरकार इन कंपनियों को उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत लाने की तैयारी में है.