Cyber Crime: महामारी के चलते दफ्तरों के बंद होने पर घर से काम करने यानी वर्क फ्रॉम होम का विकल्प तेजी से उभरा है.
दफ्तरी कामकाज के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म के बढ़ते उपयोग और कर्मचारियों व कंपनी की इस पर अतिरिक्त विश्वसनीयता ने अन्य साइबर अपराधों के साथ-साथ डेटा चोरी का जोखिम भी बढ़ा दिया है.
पिछले 12 महीनों में 18 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 59% भारतीय किसी न किसी तरह से साइबर अपराध (Cyber Crime) का शिकार हुए हैं.
साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में कार्यरत ग्लोबल फर्म नॉर्टन लाइफ़लॉक की हालिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले 12 महीनों में 18 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 59% भारतीय किसी न किसी तरह से साइबर अपराध का शिकार हुए हैं.
10 देशों में 10,000 से अधिक वयस्कों के सर्वेक्षण के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गई है. रिपोर्ट के मुताबिक 36% से अधिक भारतीय वयस्कों ने कहा कि उनके खातों या उपकरणों को अनधिकृत संस्थाओं द्वारा एक्सेस किया गया था.
करीब 45% से अधिक भारतीय उपभोक्ताओं ने कहा है कि वे पहचान की चोरी (आइडेंटिटी थेफ्ट) के शिकार हुए हैं. इनमें से 14% पिछले एक वर्ष में ही इसका शिकार हुए हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले 1 वर्ष में कुल मिलाकर 27 मिलियन भारतीय वयस्कों ने पहचान की चोरी का सामना किया है.
इनमें से ज्यादातर ऑनलाइन अपराध लोगों द्वारा वर्क फ्रॉम होम शुरू करने के बाद हुए हैं.
अध्ययन से पता चलता है कि 10 में से 7 भारतीय वयस्कों का यह मानना है कि दूर से काम करने यानी रिमोट वर्किंग ने हैकर्स और साइबर अपराधियों के लिए अपने कारनामों को अंजाम देना बहुत आसान बना दिया है.
जी 20 देशों के लिए वित्तीय नियमों का समन्वय करने वाले अंतरराष्ट्रीय निकाय वित्तीय स्थिरता बोर्ड (एफएसबी) का मानना है कि दुनिया भर में वित्तीय फर्मों को बढ़ते साइबर हमलों के खिलाफ अपनी सुरक्षा प्रणाली को और मजबूत बनाने की जरूरत पड़ सकती है.
एफएसबी का कहना है कि महामारी की शुरुआत के बाद से लोगों के दूर से काम करने से साइबर अपराधियों को अब अपने कारनामों को अंजाम देने के लिए पहले के मुकाबले काफी ज्यादा मौके मिल रहे हैं.
इसी के चलते फ़िशिंग, मैलवेयर और रैंसमवेयर जैसे साइबर अपराधों के मामले सालाना आधार पर 40 गुना बढ़कर अप्रैल 2021 के अंत में प्रति सप्ताह 2,00,000 से अधिक हो गए. फरवरी 2020 में प्रति सप्ताह ऐसे केवल 5,000 अपराध होते थे.