इस तरह तो खत्म हो जाएंगी मोबाइल कंपनियां

10 करोड़ ग्राहकों ने बदला अपना मोबाइल ऑपरेटर.

इस तरह तो खत्म हो जाएंगी मोबाइल कंपनियां

फोटो साभार: TV9 भारतवर्ष

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भारत में वित्त वर्ष 2023 में 10 करोड़ से ज्यादा मोबाइल सबस्क्राइबर्स एक टेलीकॉम आपरेटर को छोड़कर किसी दूसरे टेलीकॉम आपरेटर के पास चले गए हैं. यानी इन लोगों ने अपना नंबर किसी और टेलीकॉम कंपनी के नंबर में पोर्ट करा लिया है. इसे अगर ऐसे देखें कि किसी ने सिर्फ़ एक बार अपना टेलीकॉम ऑपरेटर बदला है तो वित्त वर्ष 2023 के दौरान पूरी आबादी के 12 फ़ीसदी मोबाइल सब्सक्राइबर्स ने अपना टेलीकॉम ऑपरेटर बदला है. ट्राई ने आंकड़े जारी कर इस बात की जानकारी दी है. कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज ने मार्च 2022 से लेकर मार्च 2023 तक मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी का विश्लेषण किया और पाया कि वित्त वर्ष 2023 में हर महीने औसतन 11 करोड़ मोबाइल ग्राहकों ने अपना नंबर पोर्ट किया है.

किसे छोड़ किसके पाए आए ग्राहक?
टेलीकॉम रेगुलेटरी ट्राई (TRAI) के आंकड़ों के मुताबिक भारत के सबसे बड़े टेलीकॉम ऑपरेटर रिलायंस जियो (Reliance Jio) ने मार्च में 30 लाख 50 हज़ार नए मोबाइल ग्राहक जोड़े हैं. भारती एयरटेल के साथ मार्च में 10 लाख 37 हज़ार मोबाइल सब्सक्राइबर आए. इस बीच वोडाफोन-आइडिया (Vi) को मार्च महीने के दौरान 12 लाख 12 हज़ार यूज़र्स छोड़ कर चले गए. मार्च में वोडाफोन आइडिया के मोबाइल ग्राहकों की संख्या घटकर 23.67 करोड़ हो गई, जो पिछले महीने में 23.79 करोड़ थी.सरकारी टेलीकॉम कंपनी बीएसएनएल ने मार्च में 5 लाख 19 हजार 8 सब्‍सक्राइबर्स गंवाए हैं. फरवरी में बीएसएनएल के सब्‍सक्राइबर्स की संख्‍या 10 करोड़ 40 लाख थी, जो मार्च महीने में 10.35 करोड़ रह गई. एमटीएनएल (MTNL) से भी उसके ग्राहक दूर जा रहे हैं. मार्च महीने में MTNL के 4 लाख 2 हजार 693 ग्राहकों ने उसे छोड़ दिया. अब एमटीएनएल के पास अब 2 करोड़ 30 लाख सब्‍सक्राइबर्स बचे हैं.

मार्च में ब्रॉडबैंड ग्राहकों की कुल संख्या में भी फरवरी की तुलना में 0.86 प्रतिशत बढ़ोतरी दर्ज की गई. यह संख्या मार्च में 84.65 करोड़ हो गई. इसके अलावा कुल टेलीफोन ग्राहकों की संख्या में भी 0.21 फ़ीसदी का मासिक इज़ाफ़ा हुआ और देश में इनकी संख्या 117 करोड़ 20 लाख हो गई.

क्यों भाग रहे मोबाइल सब्सक्राइबर्स?
कई ग्राहक दूसरी टेलीकॉम कंपनियों में अपनी ज़रूरत के टाकटाइम और डेटा टैरिफ़ के दाम कम होने की वजह से छोड़ कर जाते हैं. वहीं कुछ रिटेलर लोगों को अपने कमीशन के चक्कर में अच्छी सेवाओं का लालच देकर नंबर पोर्ट करवा लेते हैं. इस समय ज्यादातर टेलीकॉम कंपनियां रिटेलर को 250-280 रुपए तक हर पोर्ट-इन के लिए देते हैं. जबकि कुछ महीने पहले ये 300 रुपए से भी ज्यादा हुआ करता था. हालांकि कंपनियां सर्किल के हिसाब से कमीशन रेट तय करती हैं.

वहीं वोडाफ़ोन आइडिया को छोड़कर जाने की वजह साफ़ है कि कंपनी क़र्ज़ के बोझ तले दबी है. वोडाफोन आइडिया पर इंडस टावर्स का 7,000 करोड़ रुपये बकाया है. इस बकाया चुकाने के लिए को वोडाफोन आइडिया के पास जुलाई 2023 तक का समय है. अगर टेलीकॉम कंपनी इस समय तक पेमेंट नहीं करती है तो नेटवर्क की सर्विस बंद हो सकती है. पैसे के अभाव में कंपनी को 5G रोलआउट करने में समस्या आ रही है. कई ग्राहकों ने Vi के मौजूदा 4G नेटवर्क में कॉल ड्रॉप आदि की शिकायत की है. ऐसे में Vi के बहुत से मोबाइल सब्सक्राइबर्स जियो और एयरटेल जैसी कंपनियों का रुख कर रहे हैं जो 5G सर्विस रोलआउट कर चुकी हैं और ग्राहकों को लुभाने के लिए टैरिफ़ के साथ बहुत से OTT प्लेटफॉर्म के सब्स्क्रिप्शन भी ऑफ़र रहे हैं. इन कंपनियों का नेटवर्क और डेटा स्पीड भी अपेक्षाकृत बेहतर है. वहीं BSNL और MTNL के पास से भी सुविधाओं और सर्विस की कमी की वजह से ग्राहक टूट रहे हैं. अब BSNL को ही लें तो इसकी अभी हाल ही में कुछ शहरों में 4G सर्विस शुरू हो पाई है जबकि देश में 6G पर काम शुरू हो गया है. ऐसे में ग्राहकों के पास ऐसी कंपनियों के साथ रुकने की कोई ख़ास वजह बचती नहीं है. यही वजह है कि लोग अपना फ़ोन नंबर अपनी सहूलियत के हिसाब से किसी दूसरी टेलीकॉम कंपनी पर पोर्ट कर रहे हैं.

जियो-एयरटेल का दबदबा पड़ेगा भारी?
इस समय देश में दो ही दिग्गज टेलीकॉम कंपनियां हैं. पहली जियो और दूसरी एयरटेल. टेलीकॉम ऑपरेटर्स मार्केट में ग्राहकों की हिस्सेदारी का क़रीब 70 फ़ीसदी सिर्फ़ इन दोनों ही कंपनियों के पास है. वोडाफ़ोन-आइडिया के पास 21 फ़ीसदी हिस्सेदारी है जो लगातार कम हो रही है. ऐसे में जब देश में जियो-एयरटेल ये दोनों ही कंपनियां रहेंगी तो इनका द्वयधिकार हो जाएगा. ये कंपनियां ऐसा कारोबारी माहौल बना सकती हैं जिससे भविष्य में तीसरी कंपनी के लिए टेलीकॉम इंडस्ट्री में आना मुश्किल हो जाए. इसके अलावा ये कंपनियां अपनी शर्तों पर मोबाइल टैरिफ़ या दूसरी सर्विस के दाम तय कर सकती हैं, जो ज़रूरत से ज़्यादा भी हो सकता है और आखिरकार इसका वहन उपभोक्ता को करना होगा.

Published - May 25, 2023, 08:51 IST