भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने अपनी एक रिपोर्ट में 29.06 किलोमीटर लंबे द्वारका एक्सप्रेसवे की “बहुत अधिक” सिविल कंस्ट्रक्शन कॉस्ट की बात कही है. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) ने इसे 250.77 करोड़ प्रति किलोमीटर की लागत पर मंजूरी दी थी. जबकि राष्ट्रीय गलियारों के लिए बनाई गई आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने नेशनल कॉरिडोर एफिसिएंसी इंप्रूवमेंट प्रोग्राम के तहत इसके लिए 18.20 करोड़ प्रति किलोमीटर की अनुमति दी थी.
कैग ने अपनी ये ऑडिट रिपोर्ट ‘भारतमाला परियोजना के फेज़-1 के इंपलीमेंटेशन’ पर तैयार की है. 2017-18 से लेकर 2020-21 तक इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है. इस 14 लेन के रोड प्रोजेक्ट जिनमें आठ एलिवेटेड लेन और 6 लेन ग्रेड (सड़क की ऊंचाई) शामिल हैं. इसे दिल्ली और गुड़गांव के बीच NH 48 पर भीड़ कम करने के लिए तैयार किया जा रहा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि शुरुआत में हरियाणा सरकार ने अपनी गुड़गांव-मानेसर शहरी निर्माण योजना-2031 के तहत द्वारका एक्सप्रेसवे का प्लान बनाया था. इसके लिए हरियाणा सरकार ने अधिग्रहण भी किया था. रिपोर्ट के मुताबिक इस प्रोजेक्ट में कोई तरक्की नहीं हो पा रही थी, तब CCEA ने BPP-I के तहत इस प्रोजेक्ट को अप्रूव कर दिया. इसके बाद हरियाणा ने 90 मीटर का रास्ता NHAI को फ्री में दे दिया था.
ऑडिट में पाया गया कि ग्रेड पर 14-लेन राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने के लिए 70-75 मीटर तक सही रास्ते की आवश्यकता थी. हालांकि बिना किसी कारण के हरियाणा में जहां इसकी लंबाई 19 किलोमीटर है, वहां इसे 8 लेन के एलिवेटेड मेन कैरेज-वे और 6 लेन ग्रेड रोड के साथ प्लान किया गया. जबकि NHAI के पास पहले से ही 90 मीटर का रास्ता था और वो ग्रेड पर 14 लेन बनाने के लिए काफी था.
इस भारी भरकम निर्माण की वजह से 29.06 किमी की लंबाई के लिए ईपीसी यानी इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट और कंस्ट्रक्शन मोड पर बनने वाले इस हाईवे के लिए 7,287.29 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए. यानी 250.77 करोड़ प्रति किलोमीटर. जबकि CCEA ने 18.20 करोड़ प्रति किलोमीटर ही अप्रूव किए थे.
हालांकि रिपोर्ट में MoRTH का जवाब भी है. MoRTH ने कहा कि अंतर-राज्य यातायात ठीक से चलता रहे इसके लिए आठ-लेन एलिवेटेड कॉरिडोर विकसित करने का फैसला किया गया था. यहां छह लेन का मौजूदा कैरिजवे था लेकिन भविष्य को ध्यान में रखते हुए जरूरी अंडरपास शामिल किए गए.