कला और संस्कृति का बेहतरीन मेल है दुनिया का सबसे बड़ा नदी द्वीप असम का माजुली (Majuli) जहां अपार सुंदरता बिखरी है. लेकिन इस द्वीप को मुखौटा बनाने की कला के रूप में भी जाना जाता है. माजुली (Majuli) में प्राकृतिक पदार्थों से अद्भुत मुखौटे पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं.
असम की सांस्कृतिक राजधानी कहलाता है माजुली
ब्रह्मपुत्र नदी के बीच बसे दुनिया के सबसे बड़े द्वीप माजुली को असम की सांस्कृतिक राजधानी कह सकते हैं. माजुली (Majuli) में मुखौटा बनाने की कला बेहद पुरानी है. वैष्णव संत शंकरदेव और माधवदेव ने कई नाटक लिखे हैं. इन नाटकों में अभिनव करने के लिए माजुली के मुखौटों का सहारा लिया जाता है.
यहां की मुखौटा कला में बसती है जान
इन मुखौटों को बनाने की प्रक्रिया काफी जटिल है. सबसे पहले जिस पात्र का भी मुखौटा बनाना होता है उसका बांस की महिम पट्टियों से खांचा तैयार किया जाता है. दूसरे चरण में इस खांचे के ऊपर मिट्टी की परत चढ़ाई जाती है. इसमें कार्डबोर्ड और गाय के गोबर का भी इस्तेमाल होता है. एक मुखौटा कम से कम तीन दिनों में तैयार होता है. तैयार मुखौटे को उसकी जरूरत के हिसाब से अगल-अलग रंगों में पेंट भी किया जाता है.
ऑर्गेनिक चीजों के इस्तेमाल से बनाए जाते हैं मुखौटे
मुखौटा बनाने के लिए कई चरणों में काम बंटा होता है और इसे मिट्टी, गोबर, कपड़ा, रंग इत्यादि से तैयार किया जाता है. इसे तैयार करने के लिए ऑर्गेनिक चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। माजुली में तीन तरह के मुखौटे तैयार किए जाते हैं। ”बड़ा मुख” यानी जो शरीर के आकार का होता है. ”लोतोकाइमुखा” यानी जिसकी आंखें और जीभ वगेहरा हिल सकती है और ”मुखमुखा” यानी मुंह के आकार का मुखौटा. माजुली में मुखौटा बनाने की यह कला आज पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है.
मुखौटों की ये कला महान संत शंकरदेव की देन
मुखौटों की यह कला महान संत शंकरदेव की ही देन है. वैष्णव परम्परा में बदलाव की लहर लाने वाले शंकरदेव ने रामायण, महाभारत और श्रीकृष्ण से जुड़ी कहानियों को कहनें के लिए रंगमंचीय विधा का इस्तेमाल किया जिसे उन्होंने ”भावोना” कहा. इसके लिए उन्होंने मुखौटों का इस्तेमाल करना शुरू किया.
असम संस्कृति की जड़ से जुड़े इन मुखौटों की चर्चा लंदन तक
असम संस्कृति की जड़ से जुड़े इन मुखौटों की चर्चा आज माजुली (Majuli) से निकलकर लंदन तक में हो रही है. ज्यादातर मुखौटों का प्रयोग रामायण, महाभारत और इसके अलावा कृष्णलीला से जुड़े जो पात्र हैं वो नाटक करते हैं खासतौर से इन मुखौटों का इस्तेमाल करते हैं. इसकी खासियत यह है कि ये पूरी तरीके से प्राकृतिक रूप से तैयार किए जाते हैं.