जब एक एसेट टाइप औसत या खराब रिटर्न देता है, तो दूसरा आमतौर पर अच्छा करता है.
Stocks Vs Mutual Funds: दोनों में से एक चुनने के बजाय अगर निवेशक दोनों ऐसेट में मिला जुलाकर निवेश करें तो बेहतर एसेट एलोकशन और रिटर्न मिल सकता है.
आपको टार्गेट, रिस्क, अवधि, फंड मेनेजर का ट्रेक रिकॉर्ड, एक्सपेंस रेशियो, फंड का परफॉर्मस जैसे पहलुओं को ध्यान में लेना चाहिए.
पोर्टफोलियो को बेहतर बनाने के लिए अपनी जरूरतें, रिस्क लेने की क्षमता, शोर्ट, मीडियम और लोंग-टर्म टार्गेट, टैक्स जैसे पहलु ध्यान में रखने चाहिए.
दुनिया भर में चल रही महामारी के बीच बर्नआउट नाम का एक शब्द अत्यधिक लोकप्रिय हो गया है.
Financial Planning: निवेश में अनुशासन जरूरी है, जो एसआईपी के जरिए हासिल कर सकते हैं. इसके अलावा एसेट अलोकेशन और रि-बैलेंसिंग भी जरूरी है.
अपनी उम्र, इनकम, खर्च, रिस्क-केपेसिटी, टार्गेट जैसे पैरामीटर ध्यान में रख कर आदर्श पोर्टफोलियो बनाए. मार्केट को टाइम करने की गलती ना करें.
म्यूचुअल फंड निवेश में आपको स्कीम सिलेक्शन, मोनीटरिंग, एसेट अलोकेशन, स्विचिंग, रिव्यू और रि-बैलेंसिंग जैसे पहलू पर फोकस करना जरूरी है.
फाइनेंशियल फ्रीडम आपको मानसिक स्टेबिलिटी देती है. एक बार जब आपके डेट और एक्सपेंस बढ़ने लगते हैं, तो स्टेबिलिटी सपने की तरह लगने लगती है.
Asset Allocation: अगर-अलग तरह के एसेट क्लास में अपना पैसा निवेश करने की रणनीति, लंबे समय में बेहतरीन रिटर्न पाने में मदद करती है.