जब कभी भी ब्याज दर महंगाई के साथ कदमताल नहीं कर पाती है, इन्वेस्टर्स के लिए वास्तविक रिटर्न निगेटिव हो जाता है. ऐसी स्थितियों में एफडी जैसे पारंपरिक उपाय पैसे का नुकसान करने लगते हैं. हम अभी ऐसी ही स्थिति में हैं, जब खुदरा महंगाई 7.4 फीसदी के पार है, लेकिन एफडी पर 6-7 फीसदी के बीच रिटर्न मिल रहा है. इस कारण हर कोई वैकल्पिक उपाय खोजने लगता है, जो एफडी से ज्यादा रिटर्न दे सके. उच्च लाभांश देने सवाले स्टॉक्स बढ़िया विकल्प हो सकते हैं. आइए सबसे पहले लाभांश के बारे में सब जान लें.
लाभांश
लाभांश दरअसल कंपनी को हुई कमाई को शेयरहोल्डर्स के बीच बांटने का तरीका है. लाभांश कई तरीके से दिया जा सकता है. कई बार यह नगद भुगतान होता है तो कभी-कभी शेयरों या अन्य तरीकों से दिया जाता है. ज्यादातर कंपनियां नकदी में ही लाभांश का भुगतान करती हैं. संक्षेप में कहें तो जैसे आपको एफडी पर ब्याज से कमाई होती है, उसी तरह शेयरों में इन्वेस्टमेंट करने पर लाभांश के रूप में कमाई होती है. किसी कंपनी का लाभांश निदेशक मंडल के द्वारा तय होता है और इसे शेयरहोल्डर्स मंजूर करते हैं. हालांकि किसी कंपनी के लिए लाभांश देना बाध्यकारी नहीं होता है.
कंपनियां आम तौर पर वित्तीय परिणाम के साथ लाभांश का ऐलान करती हैं. कंपनी अपने प्रदर्शन और निदेशक मंडल की मंजूरी के हिसाब से तिमाही, छमाही, सालाना या किसी भी अंतराल पर लाभांश दे सकती है.
डिविडेंड यील्ड
डिविडेंड यील्ड एक वित्तीय अनुपात होता है, जो प्रति शेयर बाजार मूल्य की तुलना में शेयरहोल्डर्स को दिए गए नकद लाभांश की मात्रा तय करता है. इसकी गणना करने के लिए प्रति शेयर लाभांश को प्रति शेयर बाजार मूल्य से विभाजित किया जाता है और परिणाम को 100 से गुना किया जाता है. उदाहरण के लिए अगर 120 रुपये के शेयर पर कंपनी 12 रुपये लाभांश देने का ऐलान करती है तो डिविडेंड यील्ड की गणना इस तरह से की जाती है…(12/120*100 = 10%).
ज्यादा डिविडेंड देने वाली कंपनी से यह पता चलता है कि वह कम जोखिम वाली है, उसके खाते में पर्याप्त नकदी है और लगातार ग्रोथ दर्ज कर रही है. बाजार में ऐसी कई कंपनियां हैं, जो लाभांश देती हैं. इस साल अब तक किन कंपनियों ने डिविडेंड दिया है या कौन कंपनियां लाभांश का भुगतान करने वाली हैं, इसे जानने के लिए 5paisa.com https://bit.ly/3RreGqO पर लॉग ऑन करें.
बाजार में गिरावट की स्थिति में ग्रोथ स्टॉक्स की तुलना में ठोस फंडामेंटल्स वाले ऐसे स्टॉक्स में गिरावट की आशंका कम रहती है, क्योंकि ये कंपनियां इस बात से लाभांश में कटौती करने से बचती हैं कहीं बाजार में इससे गलत संकेत नहीं जाए. अधिक डिविडेंड यील्ड वाले स्टॉक्स में निवेश करने का एक और लाभ पूंजी में वृद्धि है, जो लंबे समय में संपत्ति का सृजन करता है. वहीं दूसरी ओर एफडी की स्थिति में पूंजी में वृद्धि संभव नही है. शेयरहोल्डर्स को एक तय तारीख पर डिविडेंड का भुगतान किया जाता है. डिविडेंड के भुगतान को लेकर कुछ अहम तारीखें होती हैं.
लाभांश का ऐलान करने की तारीख
यह वह तारीख है जब कंपनी शेयरहोल्डर्स के लिए लाभांश का ऐलान करती है. प्रेस रिलीज में डिविडेंड बांटने की तारीख, डिविडेंड का साइज, रिकॉर्ड की तारीख और पेमेंट की तारीख जैसे ब्यौरे होते हैं.
रिकॉर्ड की तारीख
यही वह तारीख है जब कंपनी के शेयरहोल्डर्स की सूची यानी रिकॉर्ड बुक में आपका नाम होना चाहिए. इस तारीख तक जिन इन्वेस्टर्स का नाम शेयरहोल्डर्स की लिस्ट में नहीं होता है, उन्हें लाभांश का फायदा नहीं मिलता है.
एक्स-डिविडेंड डेट
जब कंपनी रिकॉर्ड डेट तय कर लेती हैं, उसके बाद स्टॉक एक्सचेंज के द्वारा एक्स-डिविडेंड डेट तय की जाती है. आम तौर पर यह रिकॉर्ड की तारीख से दो दिन पहले होता है. लाभांश का भुगतान पाने के लिए आपको एक्स-डिविडेंड डेट से पहले उक्त कंपनी का शेयर खरीद लेना चाहिए. अगर आप एक्स-डिविडेंड डेट पर या उसके बाद शेयर खरीदते हैं तो आपको लाभांश नहीं मिलता है. ऐसी स्थिति में लाभांश उसी को मिल जाता है, जिससे आपने शेयर खरीदा है.
भुगतान की तारीख
यह तारीख कंपनी तय करती है, और इसी तारीख पर जमा हुए लाभांश का भुगतान शेयरहोल्डर्स को किया जाता है. सिर्फ वही शेयरहोल्डर्स लाभांश पाने के हकदार होते हैं, जिन्होंने एक्स-डिविडेंड डेट से पहले शेयर खरीदा होता है.