क्रेडिट कार्ड लेने के पीछे लोगों की एक वजह होती है कि उसके ज़रिए की जाने वाली खरीदारी पर मिलने वाले रिवॉर्ड्स और कैशबैक. किसी स्मार्टफ़ोन, अप्लायंस या गैजेट की खरीदारी के लिए लोग अक्सर बैंक के कैशबैक ऑफर्स का इंतज़ार करते हैं. बैंकों के क्रेडिट कार्ड पर मिलने वाले भारी कैशबैक से ग्राहकों को सामानों की खरीद पर अच्छी छूट मिल जाती है लेकिन अब इस छूट पर ग्रहण लग सकता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सरकार जल्द इस कैशबैक पर GST लगाने की तैयारी कर रही है. अभी बैंक की ओर से जो कैशबैक ग्राहक को उसके खाते में दिया जाता है उस पर किसी तरह का कोई टैक्स नहीं लगता है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
चार्टेड अकाउंटेंट यतेंद्र खेमका कहते हैं कि सरकार क्रेडिट कार्ड कंपनियों या पेमेंट गेटवे के ज़रिए मिलने वाले कैशबैक जैसे ऑफर्स को मार्केटिंग और ब्रांडिंग सर्विस के तौर पर देख रही है इसलिए इस पर जीएसटी लगाने की तैयारी की जा रही है. हालांकि उनका कहना है कि सरकार को इसे ग्राहक को दी जाने वाली छूट के तौर पर ही देखना चाहिए और कैशबैक को जीएसटी के दायरे में नहीं लाया जाना चाहिए. अगर भविष्य में ऐसा होता है तो क्रेडिट कार्ड कंपनियां कैशबैक में टैक्स को पहले से शामिल कर देंगी जिसके बाद GST कटकर ग्राहक को कम छूट मिला करेगी.
अभी कटता है TDS
कैशबैक के लिए क्रेडिट कार्ड कंपनी या पेमेंट गेटवे और ऑनलाइन खुदरा विक्रेताओं के बीच एक करार होता है. दोनों स्वतंत्र रूप से काम करते हैं और ग्राहक को सीधे उसके खाते में ये कैशबैक या छूट देते हैं. ये व्यवस्था अभी वस्तु एवं सेवा कर के दायरे में नहीं आती है. यही वजह है कि अभी कैशबैक पर कोई GST नहीं लगता है. हालांकि आयकर विभाग क्रेडिट कार्ड से हुए लेनदेन पर मिलने वाले रिवॉर्ड्स और कैशबैक को Income From other sources यानी अन्य स्त्रोतों से हुई आय मानता है और ये टैक्स के दायरे में आता है. ऐसे में अगर किसी व्यक्ति को एक वित्त वर्ष में 50,000 रुपए से ज्यादा का कैशबैक मिलता है तो क्रेडिट कार्ड कंपनियां इस पर 10 पर्सेंट के हिसाब से TDS काट लेती हैं.