सुखराम के नाक की हड्डी बढ़ी हुई है. कोरोना काल में निजी अस्पताल में डाक्टर ने ऑपरेशन एक लाख रुपए का खर्च बताया था. इस बीमारी से कोई खास खतरा नहीं था तो उन्होंने ऑपरेशन टाल दिया. अब पता किया तो अस्पताल दो लाख रुपए मांग रहा है.
यह सिर्फ सुखराम की समस्या नहीं है. पॉलिसी बाजार का सर्वे बताता है कि पिछले पांच साल में इलाज का खर्च दोगुना से ज्यादा बढ़ा है. साल 2018 के दौरान अस्पताल में उपचार का औसत खर्च 24,569 रुपए था जो 2022 में बढ़कर 64,135 रुपए हो गया. इस तरह पिछले पांच साल में इलाज का खर्च 160 फीसद बढ़ गया. मेट्रो शहरों में उपचार की लागत औसत से ज्यादा बढ़ी है. यह अंदेशा पहले से ही था कि कोविड के बाद महंगा हुए इलाज का असर लोगों की जेब पर पड़ेगा. लेकिन असर इतना ज्यादा पड़ेगा, इसका अनुमान नहीं था. यही नहीं, अस्पतालों में एक ही इलाज के खर्च भारी अंतर है. जितना बड़ा अस्पताल. उतना ही ज्यादा इलाज की लगात.
क्या है वजह?
दरअसल, कोरोना के दौरान अस्पतालों ने इलाज के नाम पर कुछ नई सुविधाएं जोड़ीं. संक्रमण के बचाव के लिए कुछ नई व्यवस्थाएं कीं. इससे इलाज का खर्च बढ़ गया. महामारी खत्म होने के बाद इस खर्च में कोई कटौती नहीं की गई बल्कि खर्च की लागत और बढ़ा दी. इसी का नतीजा है कि देश में सामान्य महंगाई सात फीसद के स्तर पर है जबकि हेल्थ केयर की इंफ्लेशन 14 फीसद यानी दोगुना अधिक तेजी से बढ़ रही है. इसका मतलब यह हुआ कि अगर अभी जिस बीमारी के इलाज का खर्च 3 लाख रुपए है. अगले पांच साल में वो बढ़कर 6 लाख रुपए हो जाएगा.
क्या है स्थिति
नेशनल हेल्थ प्रोफाइल-2021 के मुताबिक अस्पताल में भर्ती होने पर एक बार के खर्च में से औसतन 80 फीसद से ज्यादा हिस्सा लोगों को अपनी जेब से देना पड़ रहा है. इसे ‘आउट ऑफ पॉकेट’ मेडिकल खर्च कहते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताती है कि इस तरह के मेडिकल खर्च के कारण भारत में हर साल 5 करोड़ से ज्यादा लोग गरीब हो जाते हैं. घरों में स्वास्थ्य पर बढ़ते खर्च की वजह से हर साल 8-9 फीसद लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
पर्सनल फाइनेंस एक्सपर्ट डॉ. राहुल शर्मा कहते हैं कि कोरोना के बाद लोग हेल्थ बीमा खरीदने को लेकर जागरूक हुए हैं. बीमा की पहुंच बढ़ने पर स्वास्थ्य सेवाओं की मांग और उपयोग में इजाफा होता है. इससे इलाज की लागत बढ़ती है. इलाज के खर्च में डायग्नोस्टिक और दवा का बड़ा हिस्सा होता है. पिछले तीन साल में दवाओं की कीमतें 15-20 तक बढ़ी हैं. क्लेम की लागत बढ़ने पर हेल्थ बीमा कंपनियां प्रीमियम बढ़ा रही हैं. पिछले एक साल में प्रीमियम में 10 से 25 फीसद वृद्धि हुई है. डॉ. शर्मा कहते हैं कि फिलहाल किस बीमारी के इलाज का कितना खर्च होना चाहिए, इसकी कोई सीमा तय नहीं है. अस्पताल इलाज के नाम पर मनमाना पैसा वसूल रहे हैं. इससे बड़ी संख्या में लोग समय पर इलाज नहीं करा पा रहे हैं. अगर इस बारे में सरकार कोई सख्त नियम बनाए तो हेल्थ केयर की महंगाई पर अंकुश लग सकता है.