नम्रता खुद को ठगा महसूस कर रही हैं. 12लाख सालाना पैकेज के हिसाब से जितनी इनहैंड सैलरी का हिसाब लगाए बैठी थी, मैसेज उससे कम का आया… दरअसल नम्रता अपनी सैलरी ब्रेक-अप को ठीक से समझ नहीं पाई और अपनी Cost to Company यानी CTC को टेक-होम सैलरी समझ बैठी. बहुत से लोग Dकाउंट में क्रेडिट होने वाली सैलरी को ही अपनी कुल सैलरी मान लेते हैं. इन समस्याओँ का सीधा समाधान है कि आप ध्यान से अपनी सैलरी स्लिप को समझें….
सबसे पहले जानिए CTC को?
Cost to Company यानी CTC आपको जॉब के ऑफर लेटर के साथ दी जाती है. यह रकम बताती है कि एक एम्पलॉय को हायर करने में कंपनी कितना कॉस्ट यानी लागत आ रही है. CTC में एम्पलॉइ को मिलने वाले हर डायरेक्ट और इनडायरेक्ट बेनेफिट का लेखा जोखा रहता है. ये कंपनी का आप पर खर्चा है. इसमें बेसिक सैलरी से लेकर सारे अलाउंस बिना टैक्स की कटौती के शामिल होते हैं साथ ही EPF का अनिवार्य योगदान, बोनस से लेकर वेरिएबल सब मिलकर बनता है CTC.
मनी9 की सलाह
अपने CTCको हर महीने मिलने वाली इन-हैंड सैलरी न समझें. बेहद जरूरी है कि जब भी आप नई नौकरी ज्वाइन करते हैं तो CTC का ब्रेक अप जरूर मांगे और उसे पढ़ें. नई नौकरी के समय सैलरी पर बात करते समय ग्रॉस सैलरी या नेट सैलरी के आधार पर सैलरी मांगे, CTC पर नहीं.