पिता के गुजरने के बाद जब अनिल घर का म्यूटेशन यानी घर को अपने नाम करवाने मेरठ के तहसील पहुंचे तो एक नए डॉक्यूमेंट की मांग सुनकर परेशान हो गए. जिसे प्रोबेट कहा जा रहा था. अनिल सोचने लगे कि पिता ने वसीयत तो बनाई थी और घर भी उनके नाम किया है तो फिर ये प्रोबेट क्या है? और क्यों मांगा जा रहा है?
हो सकता है कि आपने भी प्रोबेट के बारे में पहली बार सुना हो इसीलिए आज हम इसी के बारे में बात करेंगे और जानेंगे कि प्रोबेट होता क्या है और ये कितना जरूरी है.
दरअसल प्रोबेट कोर्ट में वसीयत की वैधता पुष्टि करने की कानूनी प्रक्रिया है. अगर प्रॉपर्टी को लेकर कोई विवाद होता है या ज्यादा दावेदार होते हैं तो प्रोबेट की जरूरत पड़ती है. प्रोबेट का मकसद ये सुनिश्चित करना है कि वसीयतकर्ता की संपत्ति उसकी इच्छा के अनुसार उन्हीं लोगों को मिले जैसा कि वसीयत में बताया गया है. अगर वसीयत एक से ज्यादा लोगों के नाम है तो प्रॉपर्टी का बंटवारा वसीयत के हिसाब से ही किया जाए.
आसान शब्दों में कहें तो प्रोबेट एक सर्टिफिकेट होता है जो कोर्ट की ओर से वसीयत के संबंध में जारी किया जाता है. एक तरह से प्रोबेट एक ऑर्डर होता है जिसमें कोर्ट वसीयत को लागू करने का आदेश देता है. अब सवाल ये है कि आखिर प्रोबेट बनवाने की जरूरत क्यों पड़ती है?
एस्टेट प्लानर जितेन्द्र सोलंकी कहते हैं कि वसीयत को सादे कागज पर भी लिखा जा सकता है. ऐसे में कई बार फर्जी वसीयत के मामले भी सामने आते हैं .कुछ लोग अपने जीवनकाल में एक से ज्यादा वसीयत भी लिख देते हैं. प्रोबेट की प्रक्रिया के जरिए अदालत वसीयत के असली होने की पुष्टि करती है. वसीयत के प्रोबेट से संबंधित प्रावधान भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 में दिया गया है. इस कानून के अनुसार किसी व्यक्ति की अंतिम वसीयत को ही वैध माना जाता है.
अब जानते हैं कि प्रोबेट की प्रक्रिया क्या है?
प्रोबेट बनवाने के लिए वसीयतकर्ता को अपनी जिला अदालत में आवेदन देना होता है, जिसके नाम वसीयत लिखी गई है या फिर वसीयत का एक्जीक्यूटर इसके लिए अप्लाई कर सकते हैं. प्रोबेट की प्रक्रिया के तहत दो समाचार पत्रों में विज्ञापन भी प्रकाशित कराया जाता है ताकि ये पता चल जाए कि इस संपत्ति पर किसी और व्यक्ति का अधिकार तो नहीं है. अगर वसीयत के संबंध में कोई आपत्ति नहीं आती है तो कोर्ट वसीयत का प्रोबेट जारी कर देती है.
प्रोबेट के लिए कोर्ट फीस देनी होती है. इसका भुगतान प्रोबेट जारी के करने के ऑर्डर के बाद करना होता है. प्रोबेट की फीस विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है. कुछ राज्यों में ये संपत्ति की कीमत के आधार पर तय होती है.
एक सवाल ये भी है कि क्या वसीयत का प्रोबेट अनिवार्य है?
दरअसल जब प्रॉपर्टी पूरी तरह से वसीयत बनाने वाले की होती है तो ऐसे में प्रोबेट से वसीयत की पुष्टि हो जाती है और कानूनी उत्तराधिकारी आसानी से प्रॉपर्टी को अपने नाम ट्रांसफर करा सकता है. जब वसीयतकर्ता के पास अलग-अलग राज्यों में अचल संपत्ति होती है तो इसे ट्रांसफर कराने के लिए प्रोबेट करानी पड़ सकती है .भारतीय उत्तराधिकार एक्ट 1925 के अनुसार वसीयत की गई संपत्ति कोलकाता, चेन्नई और मुंबई की भौगोलिक सीमा में आती है तो वसीयत का प्रोबेट कराना अनिवार्य है. अगर वसीयत का कोई एक्जीक्यूटर नहीं है तो कोर्ट एडमिनिस्ट्रेटर नियुक्त कर देता है जो वसीयत के हिसाब से संपत्ति का बंटवारा करता है.
ऐसे में अनिल को सबसे पहले जिला अदालत में जाकर वसीयत को प्रोबेट कराना होगा, इस सर्टिफिकेट के आधार पर पिता की संपत्ति उनके नाम पर ट्रांसफर हो जाएगी.